स्वामीनाथन आयोग
स्वामीनाथन आयोग क्या है ?
प्रस्तावना:-
देखा जाये तो भारतीय कृषि प्रणाली वर्षों से विभिन्न समस्याओं से जूझ रही है। किसानों द्वारा आत्महत्या करना, कम आय का होना, असमान वितरण होना और बाजार आधारित जोखिम का होना शामिल है। इन सभी ज्वलंत समस्याओं को हल करने के लिए सरकार द्वारा वर्ष 2004 में कृषि से जुड़ी समस्याओं का सही प्रकार अध्ययन करने हेतु एक आयोग गठित किया था। इस आयोग का नाम राष्ट्रीय किसान आयोग (National Commission on Farmers – NCF) था। सरकार ने इस आयोग के अध्यक्ष के लिए डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन को चुना थे, जिन्हें भारत में हरित क्रांति का जनक भी कहा जाता है। इसी कारण इस आयोग को स्वामीनाथन आयोग के नाम से प्रसिद्ध मिली।

देश में स्वामीनाथन आयोग की स्थापना:-
इसकी स्थापना नवंबर 2004 में की गयी थी। इसके अध्यक्ष डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन थे। इसका उद्देश्य किसानों की समस्याओं को समझकर उनकी आजीविका और कृषि को टिकाऊ, लाभकारी और समावेशी बनाना था। स्वामीनाथन आयोग ने वर्ष 2004 से 2006 के बीच 5 रिपोर्टें प्रस्तुत की थीं। इन रिपोर्टों में प्रस्तुत किया गया कि किसानों की आय बढ़ायी जाये, कृषि उत्पादन में सुधार हो, खाद्य सुरक्षा और भूमि सुधारों से संबंधित सुझाव प्रस्तुत किए गए।
इस आयोग के मुख्य सुझावों पर एक नजर:-
भारत में गठित स्वामीनाथन आयोग ने किसानों की समस्याओं का विश्लेषण करते हुए अनेक महत्वपूर्ण और कार्यकारी सुझाव दिए। इनमें सबसे चर्चित और महत्वपूर्ण एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) की गणना का फार्मूला है।
1. आयोग द्वारा प्रस्तुत MSP का फार्मूला (C2 + 50%):-
डॉ. एस स्वामीनाथन का यह भी मानना था कि किसान को अपनी उपज की लागत का सही मूल्य मिलना ही चाहिए। इसके लिए उन्होंने सरकार के सामने कुछ सुझाव भी दिया कि न्यूनतम समर्थन मूल्य की गणना हमे किस प्रकार करनी चाहिए:
- इसमे C2 लागत = कुल उत्पादन लागत हो, जिसमें बीज, खाद, श्रम, किराया, मशीन, भूमि का मूल्य और ब्याज आदि शामिल हैं।
- साथ ही MSP = C2 + 50% लाभ हो।
आयोग द्वारा इस फॉर्मूले के अनुसार किसान को अपने उत्पादन की लागत पर 50% लाभ मिलना ही मिलना चाहिए। यही सुझाव आज तक महत्वपूर्ण चर्चा का विषय बना हुआ है।
2. आयोग द्वारा भूमि सुधार और पट्टेदारी की सुरक्षा का सुझाव दिया गया:-
- आयोग का सुझाव था कि भूमिहीन किसानों और बटाईदारों को भी सरकारी योजनाओं का लाभ अवश्य मिले, इसके लिए आयोग ने भूमि पट्टेदारी को कानूनी मान्यता देने की भरपूर सिफारिश की।
- आयोग का सुझाव था कि भूमि का संरक्षण और उत्पादकता बढ़ाने के लिए सॉइल हेल्थ कार्ड जैसी योजनाओं को भी बढ़ावा दिये जाने की आवश्यकता है।
3. आयोग के सुझाव में किसानों की ऋण मुक्ति और सस्ती वित्तीय सहायता का होना भी शामिल था:-
- सुझाव में कहा गया कि कृषि ऋण की ब्याज दर 4% से अधिक न हो।
- दूसरा सुझाव था कि किसानों को समय पर और सुलभ ऋण उपलब्ध कराया जाए ताकि वे साहूकारों पर निर्भर न रहें।
- तीसरा सुझाव था कि आपदा के समय ऋण माफी या पुनर्गठन की नीति सही से लागू हो।
4. आयोग द्वारा कृषि बीमा और प्राकृतिक आपदा सुरक्षा का सुझाव भी दिया गया:-
- आयोग द्वारा सिफारिस की गयी कि मौसम की अनिश्चितता और प्राकृतिक आपदाओं से किसान को बचाने के लिए व्यापक और पारदर्शी बीमा योजना की सिफारिश की गयी थी।
- आयोग ने क्लाइमेट रेज़िलियंट फार्मिंग यानि जलवायु अनुकूल खेती को बढ़ावा देने पर भी ज़ोर दिया।
5. सिफारिस में महिला किसानों को अधिकार देना:-
- महिला किसानों को किसान की वैधानिक मान्यता प्रदान की जाए।
- कृषि संसाधनों और योजनाओं में महिलाओं की भी पूर्ण भागीदारी सुनिश्चित की जाए।
6. भारत में कृषि मार्केटिंग और मूल्य निर्धारण सुधार करना:-
- आयोग की सिफ़ारिश थी कि किसानों को उनकी उपज का वाजिब मूल्य मिले, इसके लिए कृषि मंडियों में सुधार की जरूरत पर भरपूर बल दिया गया।
- किसानों को मंडियों के बाहर भी फसल बेचने की छूट दी गयी, लेकिन MSP की गारंटी रहनी चाहिए।
भारत सरकार की इसमे प्रतिक्रिया और आंशिक क्रियान्वयन पर एक नजर:-
स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्टें वर्ष 2006 तक पूरी हो गई थीं, लेकिन उनके द्वारा दिये गए सुझावों को पूर्ण रूप से लागू नहीं किया गया। मुख्य रूप से C2 + 50% के फार्मूले को लेकर आज तक भी सबसे अधिक बहस होती रही है।
सरकार का तर्क:
- इसमे सरकार का कहना रहा है कि वह A2 + FL + 50% के फार्मूले के आधार पर ही MSP घोषित करती है, जो कि पूर्ण लागत C2 से कम काफी है।
- A2 जिसका अर्थ है नकद खर्च।
- FL जिसका अर्थ है परिवार का श्रम।
- C2 जिसका अर्थ है A2 + FL + भूमि का किराया व ब्याज।
इसलिए सरकार द्वारा किसानों को वास्तविकता में उतना लाभ नहीं मिल पाता जितना स्वामीनाथन आयोग ने अपने सुझाव में दिया था।
सरकार ने C2 + 50% फार्मूला क्यों लागू नहीं किया ?
- सरकार पर राजकोषीय बोझ का होना: यदि सरकार ने C2 + 50% लागू कर भी दिया, तो सरकार को भारी मात्रा में फसलों की खरीद करनी ही पड़ेगी जिससे बजट पर भारी दबाव पड़ेगा।
- सरकार द्वारा MSP पर खरीद की कोई गारंटी नहीं: देश में सरकार द्वारा सभी फसलों की MSP घोषित होती है लेकिन सरकारी खरीद बहुत सीमित फसलों जैसे गेहूं, धान तक ही सीमित रहती है।
- इसमे संघीय ढांचा और राज्य सरकारों की कितनी भूमिका: कृषि राज्य सूची का विषय है, इसलिए केंद्र की महत्वपूर्ण योजनाओं को राज्य सरकारें लागू करने में काफी ढील बरतती हैं।
इसका निष्कर्ष:-
स्वामीनाथन आयोग भारत के कृषि क्षेत्र में एक दूरदर्शी और समावेशी दस्तावेज प्रस्तुत करता है। इसमें किसानों की आय, सुरक्षा, अधिकार और सशक्तिकरण की व्यापक दृष्टि दर्शायी गयी है। हालांकि इसे पूर्ण रूप से अभी तक लागू नहीं किया गया है, फिर भी यह नीति-निर्माताओं, किसान संगठनों और आंदोलनों के लिए एक आधार प्रस्तुत करता है।
https://prsindia.org/policy/report-summaries/swaminathan-report-national-commission-farmers