गंगा किनारे की वनस्पति
गंगा के किनारों के क्षेत्र को हरा-भरा बनाने के लिए केंद्र द्वारा दिये गए पैसे को खर्च नहीं कर पाए पाँच राज्य:-
भारत की सबसे पवित्र मानी जाने वाली और जीवनदायिनी कही जाने वाली गंगा नदी; न केवल आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है, बल्कि यह देश के करोड़ों लोगों के जीवन और जीविका से भी जुड़ी मानी जाती है। भारत में गंगा के संरक्षण और पुनर्जीवन के लिए भारत सरकार ने अनेक महत्वपूर्ण योजनाएं शुरू की हैं, जिनमें से एक प्रमुख योजना “नमामि गंगे मिशन” है। इस मिशन के तहत ही गंगा के तटों को हरा-भरा बनाने, प्रदूषण को कम करने, जैव-विविधता को हर तरह से बढ़ावा देने और नदी की पारिस्थितिकी तंत्र को संरक्षित करने की दिशा में अनेक परियोजनाएं शुरू की गईं हैं।

हाल ही की एक रिपोर्ट के अनुसार, पाँच राज्यों; जिनमे उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड व पश्चिम बंगाल शामिल हैं। जिन्हे केंद्र सरकार द्वारा गंगा किनारे हरियाली बढ़ाने के उद्देश्य से दिए गए कोष का पूरा उपयोग नहीं कर पाने की बात सामने आई है। यह स्थिति देखा जाए तो बहुत गंभीर चिंता का विषय है, क्योंकि इससे गंगा संरक्षण की समस्त प्रक्रिया पर इसका प्रतिकूल प्रभाव भी पड़ सकता है।
1. इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य और इसका महत्व:-
गंगा के किनारों को हरा-भरा बनाने का केंद्र सरकार का उद्देश्य केवल सौंदर्यीकरण को बढ़ावा देना नहीं है, बल्कि इसके पीछे बहुत से वैज्ञानिक, पारिस्थितिकी और पर्यावरणीय तर्क भी हैं। गंगा किनारे वृक्षारोपण से निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते हैं, जो इस प्रकार हैं:-
- मिट्टी के कटाव को रोकना: किनारे पर पेड़ों की जड़ें मिट्टी को बांधकर रखती हैं, जिससे नदी में कटाव नहीं होता है।
- नदी के जल स्तर को बनाए रखना: वनस्पति होने से जल-संचयन अधिक होता है, जिससे जमीन का भू-जल स्तर संतुलित बना रहता है।
- प्रदूषण में कमी होना: नदी के किनारे पर पौधे जल में मौजूद विषाक्त तत्वों को अवशोषित कर प्रदूषण को कम करने में काफी मदद करते हैं।
- जैव विविधता में वृद्धि होना: किनारे पर वनस्पतियों की उपस्थिति से पक्षियों, कीटों, मछलियों आदि की संख्या और विविधता में तेजी से वृद्धि होती है।
केंद्र सरकार ने इन सभी लक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए नमामि गंगे मिशन के अंतर्गत रिपेरियन फॉरेस्टेशन यानी तटवर्ती वनीकरण को बढ़ाने के लिए एक परियोजना शुरू की थी।
2. देश में राज्यों द्वारा धन खर्च न कर पाने के मुख्य कारण:-
देश के पाँचों राज्यों को गंगा किनारे वृक्षारोपण और हरियाली बढ़ाने के लिए बहुत बड़ी मात्रा में बजट आवंटित किया गया था। फिर भी वे इस राशि का पूर्ण या संतोषजनक तरीके से उपयोग नहीं कर पाए। जबकि पश्चिम बंगाल को छोडकर सभी भाजपा शासित राज्य हैं। इसके पीछे मुख्यतः अनेक कारण हैं:
i. प्रशासनिक उदासीनता का होना:-
देश के अनेक राज्यों में गंगा परियोजनाओं को प्राथमिकता नहीं दी गई। योजनाएं तो बन गईं, लेकिन उनके क्रियान्वयन में अधिकारियों की उदासीनता या लापरवाही देखी गई।
ii. भूमि की अनुपलब्धता का होना:-
गंगा किनारे कई स्थानों पर वृक्षारोपण के लिए आवश्यक भूमि की सही पहचान समय पर नहीं की जा सकी। बहुत से स्थानो में सरकारी भूमि पर अतिक्रमण था, तो कहीं निजी भूमि अधिग्रहण में सरकार को काफी देरी हुई।
iii. सरकार के पास तकनीकी दक्षता की कमी होना:-
गंगा किनारे के स्थानीय वन विभागों या नगरपालिकाओं के पास वैज्ञानिक रूप से उपयुक्त पौधों के चयन, रोपण और देखरेख की पर्याप्त क्षमता भी न होना इस कार्य में देरी का कारण है।
iv. निगरानी और मूल्यांकन की व्यवस्था का अभाव होना:-
देश में इस योजना पर कितना काम हुआ, कहाँ कितना खर्च किया गया और साथ ही पौधों की स्थिति क्या है; इसकी निगरानी के लिए सरकार के पास कोई मजबूत प्रणाली नहीं थी, जिससे परियोजना निष्क्रिय साबित हुई।
v. जलवायु एवं मौसमी बाधाओं का होना:-
गंगा के कुछ क्षेत्रों में लगातार बाढ़ या अत्यधिक सूखे के कारण भी पौधारोपण का कार्य बड़े स्तर पर प्रभावित हुआ।
3. राज्यवार स्थिति पर एक नजर:-
उत्तराखंड राज्य:-
गंगा नदी का उद्गम उत्तराखंड से होता है। हालांकि देखा जाये तो प्रदेश में भौगोलिक स्थितियाँ वृक्षारोपण के लिए अनुकूल हैं, फिर भी सीमित क्षेत्रफल और कठिन पर्वतीय भूगोल के कारण योजना का विस्तार काफी धीमा रहा है। उत्तराखंड के कई स्थानों पर शीतकालीन बर्फबारी और मौसमी आपदाओं के कारण भी कार्य में रूकावटें रहीं।
उत्तर प्रदेश राज्य:-
गंगा का सबसे लंबा प्रवाह उत्तर प्रदेश राज्य से होकर गुजरता है। केंद्र द्वारा बजट और जनशक्ति की पर्याप्तता के बावजूद कार्य की गति काफी धीमी रही। प्रशासनिक इच्छाशक्ति की कमी भी दिखती है और कार्यान्वयन एजेंसियों के बीच समन्वय की कमी बड़ी बाधा रही है।
बिहार राज्य:-
राज्य के बाढ़ग्रस्त इलाकों में पौधों की जीवित रहने की दर बहुत कम रही। इसके अलावा, सरकारी मशीनरी की काफी धीमी प्रक्रिया, भूमि अधिग्रहण में होने वाली समस्याएँ और राजनीतिक अस्थिरता ने कार्य को बड़े स्तर पर प्रभावित किया।
झारखंड राज्य:-
गंगा नदी का बहुत छोटा भाग ही झारखंड से होकर गुजरता है, लेकिन उसके बावजूद भी आवंटित धन का उपयोग सही से नहीं हो सका। यह राज्य तकनीकी संसाधनों और योजना निर्माण में भी काफी पिछड़ गया।
पश्चिम बंगाल राज्य:-
गंगा नदी का अंतिम प्रवाह इसी राज्य में है, जहाँ नदी समुद्र में मिलती है और यहाँ मैंग्रोव और डेल्टा क्षेत्र की पारिस्थितिकी के चलते विशेष प्रकार के पौधारोपण की जरूरत भी थी। लेकिन राज्य को योजना के तहत पर्याप्त विशेषज्ञता नहीं मिल सकी और क्रियान्वयन अधूरा ही रह गया।
निष्कर्ष:-
गंगा नदी भारत की आत्मा है। उसका संरक्षण केवल एक सरकारी योजना मात्र नहीं है, बल्कि एक राष्ट्रीय कर्तव्य भी है। यदि राज्य सरकारें और प्रशासनिक तंत्र इस दिशा में ईमानदारी और अपनी कुशल दक्षता से कार्य नहीं करेंगे, तो न केवल गंगा का भविष्य संकट में पड़ेगा, बल्कि लाखों लोगों की आजीविका और पर्यावरणीय संतुलन भी खतरे में पड़ जाएगा। गंगा के किनारों को हरा-भरा बनाना कोई विकल्प नहीं है, बल्कि एक अनिवार्यता भी है और इसके लिए धन का सही से उपयोग और सरकार द्वारा सही दिशा में प्रयास अत्यंत आवश्यक है।