गलवान घाटी में भारत-चीन संघर्ष

लद्दाख की गलवान घाटी में हुए खूनी संघर्ष के 5 साल बाद पर्यटकों के लिए जल्द खुलेगा, सरकार ने गलवान के लिए भारत रणभूमि दर्शन कार्यक्रम की शुरुआत की। Always Right or Wrong.

लद्दाख की गलवान घाटी में भारत और चीन के बीच खूनी झड़प के 5 साल बाद पर्यटकों के लिए हुआ तैयार:- 

इसका परिचय:- 

लद्दाख़ की गलवान घाटी 5 साल बाद एक बार फिर सुर्खियों में है, लेकिन इस बार युद्ध या सैन्य टकराव के लिए सुर्खियों में नहीं है, बल्कि पर्यटन के लिए खोले गए द्वारों के लिए है। 15 जून 2020 को भारत और चीन के सैनिकों के बीच हुई खूनी झड़प ने गलवान घाटी को एक युद्धक्षेत्र के रूप में प्रसिद्ध कर दिया था। चीन के साथ उस मुठभेड़ में भारत के 20 सैनिक शहीद हुए थे, वहीं चीन के भी कई सैनिक इस झड़प में मारे गए थे। झड़प के पाँच साल बाद गलवान घाटी का भविष्य एक अलग दिशा मे दिख रहा है, इस क्षेत्र को पर्यटकों के लिए फिर से खोला जा रहा है।

गलवान घाटी में भारत-चीन संघर्ष

लद्दाख की गलवान घाटी का ऐतिहासिक परिदृश्य:- 

गलवान घाटी लद्दाख़, जो अब केंद्र शासित प्रदेश है, उसके पूर्वी हिस्से में स्थित है और इसका नाम ग़ुलाम रसूल गलवान नामक एक विशेष खोजकर्ता के नाम पर पड़ा था। यह क्षेत्र चीन द्वारा अवैध कब्जा किए हुए, अक्साई चिन से जुड़ा हुआ है, लेकिन भारत इसे अपना अंग आज भी मानता है।

यह घाटी श्योक नदी की सहायक नदी गलवान नदी के साथ में स्थित है, जो सामरिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण और भारत के लिए उपयोगी भी है क्योंकि यह भारत के दौलत बेग ओल्डी यानि DBO बेस और चीन द्वारा कब्जा किए हुए अक्साई चिन के बीच में स्थित है। वर्ष 1950-60 के दशक में भी यह क्षेत्र भारत और चीन के बीच में विवाद का मुख्य कारण बना हुआ था। वर्ष 1962 के युद्ध में चीन ने इस क्षेत्र पर अपना दावा ओर ज्यादा मजबूत किया था और उसके बाद से ही यहां तनाव बना हुआ है।

गलवान घाटी में भारत-चीन संघर्ष

भारत चीन की साल 2020 की खूनी झड़प के बाद आया निर्णायक मोड़:- 

15 जून 2020 को गलवान घाटी में भारत और चीन की सेनाओं के बीच कई दिनों तक लंबा संघर्ष चला, जो पिछले 45 वर्षों में दोनों देशों के बीच सबसे घातक झड़पों में से एक मानी जाती है। इस झड़प में न तो गोलियाँ चलाई गईं और न ही विस्फोटक का उपयोग हुआ, लेकिन पत्थरों, लाठियों और कीलों से लदी रॉड्स से हुई मारपीट में भारतीय सेना के 20 सैनिक शहीद हो गए थे।

चीन ने भी अपने कई सैनिकों की मौत को स्वीकार किया, पर संख्या आज भी गुप्त रखी हुई है, बाद में 4 के मारे जाने की पुष्टि चीन द्वारा की गई। यह घटना उस समय हुई जब भारत गलवान नदी के पास चीन द्वारा बनाए गए अवैध ढांचों को हटाने की कोशिश कर रहा था। यह संघर्ष एलएसी यानि Line of Actual Control की मुख्य स्थिति, समझौतों और विश्वास को गहरा झटका दे रहा था।

Galwan घाटी में भारत-चीन संघर्ष

गलवान घाटी का भारत के लिए भू-राजनीतिक महत्व:- 

लद्दाख की गलवान घाटी केवल सामरिक दृष्टि से ही महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि राजनीतिक और कूटनीतिक दृष्टिकोण से भी भारत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण और उपयोगी भी है। यह क्षेत्र भारत की सबसे ऊँची हवाई पट्टी दौलत बेग ओल्डी से बहुत ज्यादा नज़दीक और सुंदर क्षेत्र है, जो काराकोरम दर्रे के बेहद करीब है।

यह वही मार्ग है जो भारत को सियाचिन क्षेत्र से जोड़ता है और चीन की वन बेल्ट वन रोड यानि OBOR परियोजना के तहत पाकिस्तान से होते हुए आने वाले CPEC यानि चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा की सीमा के बहुत करीब है। इसलिए कहा जाता है कि गलवान पर चीन का दावा और उसकी घुसपैठ की रणनीति, भारत के सामरिक हितों को सीधा चुनौती देती आ रही है। साल 2020 के बाद भारत ने भी तेजी से सड़क, ब्रिज और अन्य इन्फ्रास्ट्रक्चर का निर्माण शुरू चीन की सीमा के पास शुरू कर दिया है, जिससे इस क्षेत्र में भारतीय सेना की उपस्थिति ज्यादा मजबूत हो सके।

Galwan घाटी में भारत-चीन संघर्ष

साल 2020 के बाद भारत की चीन के लिए रणनीतिक प्रतिक्रिया:- 

झड़प के बाद भारत ने लद्दाख़ और अरुणाचल प्रदेश जैसे संवेदनशील सीमावर्ती इलाकों में अपनी सैन्य तैयारियों बहुत तेज किया है। भारत ने वहाँ जवानों की संख्या में काफी बढ़ौत्तरी की है, सड़कें और पुल बनाए गए हैं, जैसे कि अटल टनल और दर्शक जैसी निगरानी प्रणालियाँ भी भारत सरकार द्वारा स्थापित की गईं। साथ ही गलवान और पैंगोंग झील क्षेत्र में भारत की सतत उपस्थिति ने यह स्पष्ट संकेत दे दिया कि अब वह चीन से किसी भी मोर्चे पर पीछे हटने वाला नहीं है।

Galwan घाटी में भारत-चीन संघर्ष

भारत सरकार द्वारा गलवान घाटी में पर्यटन के लिए नई दिशा:- 

साल 2025 में गलवान घाटी को सीमित रूप से पर्यटकों के लिए खोलने और विकसित करने का निर्णय लिया गया है। इसमें भारत सरकार का मुख्य उद्देश्य:

  1. पर्यटकों के लिए राष्ट्रवाद और स्मृति: यह क्षेत्र एक युद्धस्थल के रूप में अब भारतीय नागरिकों के लिए गौरव और सम्मान का प्रतीक बन गया है। यहाँ आने वाले पर्यटक साल 2020 के शहीदों की वीरता को सम्मान और सहानुभूति दे सकेंगे। सरकार की योजना है कि यहाँ एक स्मारक, म्यूजियम और व्याख्या केंद्र भी बनाया जाये ताकि लोग इससे जुड़ सकें।
  2. इससे सरकार को आर्थिक और सामरिक लाभ: सीमावर्ती क्षेत्रों में नागरिक गतिविधि बढ़ाकर भारत अपने पड़ोसी देशों को यह संदेश देना चाहता है कि यह क्षेत्र पूरी तरह भारत का हिस्सा था, है और रहेगा। साथ ही इस क्षेत्र में विकास और शांति भी संभव है।
Galwan घाटी में भारत-चीन संघर्ष

इसका निष्कर्ष:- 

लद्दाख के गलवान घाटी की यात्रा एक प्रतीकात्मक बदलाव देखने को मिल रहा है।  भारत का एक ऐसा क्षेत्र जो कभी युद्ध का मैदान हुआ था, अब विकास और पर्यटन का केन्द्र बनकर तैयार है। यह भारत की रणनीतिक दृढ़ता, आत्मनिर्भरता और अपने सीमावर्ती क्षेत्रों के प्रति देश का समर्पण को बखूबी दिखाता है। यह कदम ना केवल भारत की संप्रभुता का प्रतीक बन गया है बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए वीरता और साहस की प्रेरणा का भी स्त्रोत बन गया है।

Galwan घाटी में भारत-चीन संघर्ष

भारत सरकार को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि यह पर्यटन स्थायी, सुरक्षित और स्थानीय समुदायों के हित में ही होगा। गलवान अब केवल एक सीमा मात्र नहीं रह गयी है, बल्कि भारतीय जज़्बे का एक जीता-जागता प्रतीक भी बन चुका है।

अमरनाथ यात्रा की हुई शानदार शुरुआत, लगभग 5000 से अधिक श्रद्धालु जम्मू से रवाना हुए; 13,000 से अधिक श्रद्धालु नुनवान व बालटाल पहुंच गए हैं। जाने विस्तार से।

https://www.aajtak.in/india/news/story/india-china-stand-off-arunachal-tawang-sector-indian-chinese-pla-army-doklam-galwan-valley-clash-ntc-1593916-2022-12-13

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