वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से मिलकर, जीएसटी पर आईटीसी को लेकर बीमा कंपनियों ने जताई चिंता। 15 से 18 % हुई जीएसटी। Always Right or Wrong.
जीएसटी पर निजी बीमा कंपनियों की बढ़ी चिंता:-
भारत में वस्तु एवं सेवा कर यानि जीएसटी को वर्ष 2017 में लागू किया गया था, जिसका उद्देश्य एकीकृत कर व्यवस्था तैयार करना और अप्रत्यक्ष करों की जटिलता को काफी हद तक कम करना था। हालांकि बीमा क्षेत्र, विशेषकर निजी बीमा कंपनियों के लिए यह व्यवस्था कई प्रकार की चुनौतियाँ भी लेकर आई। बीमा एक ऐसी सेवा है जो सीधे आम उपभोक्ता, परिवारों और उद्योगों से जुड़ी रहती है। स्वास्थ्य बीमा, जीवन बीमा, वाहन बीमा, संपत्ति बीमा जैसी पॉलिसियों पर लगने वाला टैक्स सीधे उनकी लागत को प्रभावित कर रहा है। इसलिए निजी बीमा कंपनियों की चिंता मुख्य रूप से ग्राहकों की वहन क्षमता, पॉलिसी बिक्री और निवेश प्रवाह पर ही केंद्रित बनी रहती है।
बीमा सेवाओं पर जीएसटी का होने वाला प्रभाव:-
जीएसटी लागू होने से पहले बीमा प्रीमियम पर सर्विस टैक्स 15% ही लिया जाता था। लेकिन जीएसटी आने के बाद इसे बढ़ाकर 18% तक कर दिया गया। इसका सीधा असर यह हुआ कि बीमा प्रीमियम काफी महंगा हो गया। उदाहरण के लिए, यदि किसी व्यक्ति का स्वास्थ्य बीमा प्रीमियम ₹1,000 है, तो पहले उस पर 150 रुपये टैक्स लगता था, लेकिन अब 180 रुपये टैक्स देना पड़ता है।
- जीवन बीमा में, पहले प्रीमियम पर सिर्फ आंशिक टैक्स ही लगता था, जबकि जीएसटी में व्यापक टैक्स भी लगाया जाने लगा।
- मोटर बीमा, हेल्थ इंश्योरेंस और टर्म इंश्योरेंस जैसी योजनाओं पर भी टैक्स बढ़ने से आम लोगों पर इसका अतिरिक्त बोझ पड़ता है।
निजी बीमा कंपनियों की मुख्य चिंता बस यही है कि टैक्स बढ़ने से ग्राहकों का झुकाव बीमा खरीदने की बजाय अन्य निवेश साधनों की ओर भी हो सकता है, जिससे बीमा का प्रसार भी धीमा हो जाएगा।
निवेश और दीर्घकालिक पॉलिसियों पर होने वाला असर:-
बीमा कंपनियों के लिए प्रीमियम संग्रह उनके निवेश का मुख्य आधार होता है। जीवन बीमा और पेंशन योजनाओं से प्राप्त राशि लंबे समय तक कंपनियों के पास ही बनी रहती है, जिसे वे विभिन्न परियोजनाओं और सरकारी बॉन्ड में भी निवेश करती हैं। लेकिन टैक्स बोझ बढ़ने से ग्राहक लंबी अवधि की पॉलिसियों से बचने भी लगते हैं। कंपनियों की दीर्घकालिक निवेश क्षमता भी तेजी से प्रभावित होती है। इससे बुनियादी ढांचा परियोजनाओं और पूंजी बाजार में निवेश का प्रवाह भी काफी हद तक धीमा हो सकता है।
निजी कंपनियों की प्रमुख चिंताएँ निमन्वत हैं:-
- पहले से ही बीमा की पहुंच सीमित है, टैक्स बोझ से यह और कम हो जाती है।
- कई लोग महंगे प्रीमियम के कारण पुरानी पॉलिसी छोड़ देते हैं।
- सरकारी बीमा योजनाएँ (जैसे प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना, आयुष्मान भारत) टैक्स छूट और सब्सिडी से लोगों को आकर्षित करती हैं। निजी कंपनियाँ इस प्रतिस्पर्धा में पिछड़ जाते हैं।
- छोटे स्तर की बीमा कंपनियों को टैक्स अनुपालन की लागत भी ज्यादा उठानी पड़ सकती है।
- ऑनलाइन इंश्योरेंस स्टार्टअप को सस्ते प्रीमियम दिखाकर ग्राहक खींचने में दिक्कत भी होती है।
इसके समाधान और सुझाव पर एक नजर:-
निजी बीमा कंपनियाँ बार-बार यह मांग भी उठाती रही हैं कि बीमा क्षेत्र को टैक्स में राहत दी जानी चाहिए। बीमा सेवाओं पर 18% की जगह 5% या अधिकतम 12% टैक्स ही लगाया जाए।स्वास्थ्य बीमा को आवश्यक सेवा का दर्जा दिया जाना चाहिए; जैसे शिक्षा और हेल्थकेयर पर टैक्स छूट दी जाती है, वैसे ही हेल्थ इंश्योरेंस को टैक्स-फ्री किया जाना चाहिए।
जीवन बीमा पर आंशिक छूट होनी चाहिए, दीर्घकालिक निवेश योजनाओं को प्रोत्साहित करने के लिए पॉलिसियों पर टैक्स घटाए जाने की आवश्यकता है। मध्यम वर्ग के लिए रियायत होनी चाहिए, आयकर छूट की तरह बीमा प्रीमियम पर भी टैक्स सब्सिडी दी जानी चाहिए। बीमा जागरूकता अभियान में निजी कंपनियों को शामिल कर टैक्स राहत का संतुलन भी ठीक परका बनाया जा सकता है।
इसका निष्कर्ष:-
जीएसटी के तहत बीमा सेवाओं पर उच्च दर का कर लगना, निजी बीमा कंपनियों और ग्राहकों दोनों के लिए चिंता की बात होती है। बीमा एक ऐसा क्षेत्र बना हुआ है जो समाज में आर्थिक सुरक्षा का आधार बन सकता है। यदि टैक्स के कारण बीमा महंगा होता जाता है, तो लोग इससे दूरी बना लेंगे और इसका दीर्घकालिक असर देश की सामाजिक-आर्थिक स्थिरता पर भी तेजी से पड़ेगा।
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निजी बीमा कंपनियों की मुख्य चिंता यह भी बनी हुई है कि अगर सरकार ने समय रहते टैक्स दरों पर पुनर्विचार नहीं किया, तो बीमा उद्योग की वृद्धि दर काफी धीमी हो जाएगी। इसलिए यह आवश्यक हो गया है कि बीमा को आवश्यक सेवाओं की श्रेणी में रखकर उस पर टैक्स बोझ कम किया जाना चाहिए। इससे न केवल बीमा कंपनियों को सही लाभ हो सकेगा बल्कि आम जनता को भी सस्ती और सुलभ सुरक्षा प्रदान हो सकेगी।
