
रेसिप्रोकल टैरिफ
अमेरिकी टैरिफ नीति से कैसे निपटेगा भारत और रेसिप्रोकल टैरिफ से जुड़ी रणनीति क्या है? आइये विस्तार से चर्चा करें:-
टैरिफ नीति की प्रस्तावना:-
टैरिफ का अर्थ है; किसी भी देश की आयातित वस्तुओं पर दूसरे देश द्वारा लगाया गया शुल्क होता है, जिसका मुख्य उद्देश्य घरेलू उद्योगों की रक्षा करना, राजस्व अर्जित करना और व्यापार नीति को नियंत्रित करना भी शामिल है। अमेरिका, जो विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना हुआ है, अक्सर अपनी टैरिफ नीति के नाम से वैश्विक व्यापार को डराता रहता है। हाल ही के वर्षों में अमेरिका ने रेसिप्रोकल टैरिफ की नीति को लागू करने की ओर ज्यादा ध्यान केन्द्रित किया है, जिसका मुख्य उद्देश्य व्यापारिक असंतुलन को कम करना है और अमेरिकी उद्योगों को प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त देना भी शामिल है। इस नीति के अंतर्गत, अमेरिका उन देशों पर समान रूप से टैरिफ लगाना चाहता है, जो अमेरिकी वस्तुओं पर अधिक टैरिफ लगाते आ रहे हैं।
अमेरिका की टैरिफ नीति का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य क्या है:-
अमेरिका ने अपने इतिहास में अलग-अलग समयों पर टैरिफ नीति को अपने रणनीतिक और राजनीतिक हितों के अनुसार बदला है। वर्ष 1930 के दशक में ग्रेट डिप्रेशन के समय अमेरिका ने टैरिफ बढ़ाया था, जिससे वैश्विक व्यापार में गिरावट नजर आई। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका ने मुक्त व्यापार को बढ़ावा दिया, जिसके लिए GATT (General Agreement on Tariffs and Trade) और बाद में WTO (World Trade Organization) जैसी संस्थाओं की स्थापना में इसने अहम भूमिका निभाई थी।
हालांकि, 21वीं सदी के समय में चीन, भारत जैसे उभरते हुए देशों की प्रतिस्पर्धा, अमेरिकी व्यापार घाटा और नौकरियों की हानि जैसे मुद्दों ने टैरिफ नीति को एक बार फिर केंद्र में ला खड़ा कर दिया है।
रेसिप्रोकल टैरिफ के सिद्धांत और इसके उद्देश्य:-
रेसिप्रोकल टैरिफ का अर्थ होता है कि यदि कोई देश अमेरिकी उत्पादों पर ज्यादा शुल्क लगाता है, तो अमेरिका भी उस देश के उत्पादों पर उतना ही शुल्क लगाएगा। इसका मुख्य उद्देश्य व्यापारिक असमानता को समाप्त करना है और फेयर ट्रेड को ज्यादा से ज्यादा बढ़ावा देना है।
रेसिप्रोकल टैरिफ के प्रमुख उद्देश्यों पर एक नजर:-
- ट्रेड बैलेंस में सुधार करना – जैसे अमेरिका और चीन के बीच व्यापार घाटा को कम से कम करना।
- घरेलू उद्योगों की सुरक्षा करना – खासकर मैन्युफैक्चरिंग और कृषि क्षेत्र को बढ़ावा में।
- राजस्व वृद्धि होना– टैक्स से सरकारी खजाने में योगदान होना।
- राजनीतिक दबाव का साधन होना – देशों को व्यापार समझौतों के लिए ज्यादा से ज्यादा मजबूर करना।
मिनी एग्रीमेंट और इसका विशेष संबंध:-
मिनी एग्रीमेंट वे समझौते होते हैं जो किसी व्यापक व्यापार समझौते के बजाय सीमित क्षेत्रों में जैसे कृषि, स्टील, टेक्सटाइल आदि व्यापार बाधाओं को दूर करने के लिए किए जाते हैं। अमेरिका इनका उपयोग एक रणनीतिक उपकरण के रूप में करता रहा है।
जब अमेरिका किसी देश के साथ मिनी एग्रीमेंट करता है, तो वह कुछ क्षेत्रों में टैक्स भी रियायत देता है या बदले में रियायत लेता भी है। लेकिन यदि कोई देश समझौते के बाद भी अमेरिकी वस्तुओं पर अनुचित टैक्स लगा दे, तो रेसिप्रोकल टैरिफ नीति से अमेरिका उस देश को जवाब देता है। इस तरह, रेसिप्रोकल नीति मिनी एग्रीमेंट को एक सुरक्षा कवच प्रदान करने जैसा है, ताकि अमेरिका के हितों को बनाए रखा जा सके और दूसरे देशों को अपने दबाव में लिया जा सके।
उदाहरण के तौर पर यदि भारत और अमेरिका के बीच व्यापार विवादों में भारत ने कुछ अमेरिकी उत्पादों पर टैक्स बढ़ाया, तो अमेरिका ने भी बाद में कुछ भारतीय उत्पादों पर टैक्स लगाने की चेतावनी दे डाली। लेकिन इसके साथ ही, दोनों देशों ने कुछ मिनी डील्स के जरिए कृषि और दवाइयों के क्षेत्र में अपने समझौते किए।
इसकी आलोचना व चुनौतियाँ:-
अमेरिका की रेसिप्रोकल नीति और टैरिफ वृद्धि के आलोचक इसे संरक्षणवाद का प्रतीक भी मान रहे हैं। इससे जुड़ी मुख्य चिंताएँ निम्नलिखित हैं:
- व्यापार युद्ध का खतरा बढ़ना – यदि हर देश इसे बढ़ाने लगे, तो वैश्विक व्यापार में गिरावट आनी तय है।
- उपभोक्ता कीमतों में वृद्धि होना – आयातित वस्तुओं पर Tax से महंगाई बढ़ती जाती है।
- उद्योगों की लागत में वृद्धि होना – कई अमेरिकी उद्योग आयातित कच्चे माल पर पूर्ण रूप से निर्भर हैं।
- वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में बाधा आना – आधुनिक व्यापार जटिल वैश्विक नेटवर्क पद्धति पर आधारित है।
अमेरिका का रणनीतिक दृष्टिकोण:-
इन चुनौतियों के बावजूद, अमेरिका द्वारा रेसिप्रोकल को हमेशा एक रणनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है। अमेरिका की यह नीति द्विपक्षीय बातचीत में अमेरिका को हमेशा एक मजबूत स्थिति में रखती है। मिनी एग्रीमेंट, जो कई बार व्यापक समझौते की राह को भी आसान बनाते रहे हैं, अमेरिका की इस नीति ने एक साथ मिलकर अमेरिका को वैश्विक व्यापार वार्ता में लचीलापन और दबाव दोनों प्रदान किए हैं।
निष्कर्ष:-
अमेरिका की टैरिफ नीति जो विशेषकर रेसिप्रोकल का सिद्धांत है, वह केवल एक आर्थिक उपकरण नहीं बल्कि एक व्यापक भू-राजनीतिक रणनीति का हिस्सा भी है। मिनी एग्रीमेंट्स को इस नीति की सुरक्षा करने के लिए प्रयोग में लाया जाता है ताकि अमेरिका अपने व्यापारिक हितों को ठीक से सुनिश्चित कर सके। हालांकि यह नीति कुछ अल्पकालिक लाभ प्रदान करती है, लेकिन इसके दीर्घकालिक प्रभावों की सावधानीपूर्वक समीक्षा करना बहुत आवश्यक है। यह एक संतुलित और निष्पक्ष वैश्विक व्यापार प्रणाली है जो इस दिशा में स्थिरता और समृद्धि सुनिश्चित करने के लिए तत्पर हैं।
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