ट्रम्प ने पिछले 130 दिन में अपने 11 फैसलों को पलट दिया :-
अमेरिका के 45वें राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प, अपने कार्यकाल के दौरान विवादित, अप्रत्याशित और आक्रामक नीतिगत फैसलों के लिए जाने जाते हैं। लेकिन देखा जाये तो यह भी उतना ही सच है कि जिस प्रकार उन्होंने कई बार अपने ही निर्णयों को बदला। निर्णयों को बदलने का यह घटनाक्रम उनके राष्ट्रपति बनने के शुरुआती 130 दिनों में ही देखने को मिला। उन्होंने अपने 11 बड़े फैसलों को भी पलट दिया। इस तरह की उथल-पुथल उनके नेतृत्व करने की शैली को उजागर करती है, साथ ही अमेरिकी प्रशासन में बढ़ती अस्थिरता, नीतिगत असमंजस और राजनीतिक दबावों को भी उजागर करती है।

डोनाल्ड ट्रम्प की निर्णय लेने की क्षमता:-
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एक व्यवसायी के रूप में अपने पद की शपथ ली। देखा जाये तो उनका प्रशासनिक अनुभव सीमित होने के साथ साथ उनकी निर्णय लेने की प्रक्रिया भी राजनीतिक ढांचे से बिलकुल अलग थी। वे अपने ट्विटर हैंडल के ज़रिए घोषणाएं करते। वे अपने सलाहकारों से कम और अपने आंतरिक लोगों पर अधिक भरोसा रखते हैं। इससे उनके द्वारा होने वाले फैसले जल्दीबाज़ी में लिए गए और जल्द ही पलट दिये गए।
उनके द्वारा लिए गए 6 प्रमुख फैसले जो बाद में पलटे:-
ट्रम्प द्वारा इन 130 दिनों में जिन 6 फैसलों को ट्रम्प ने पलटा, वे विभिन्न क्षेत्रों से थे जैसे:- रक्षा, विदेश नीति, व्यापार, पर्यावरण और आंतरिक नीति से संबंधित थे:-
- चीन को मुद्रा की हेराफेरी के आरोप से पीछे हटना:-
चुनाव प्रचार के दौरान ट्रम्प ने चीन पर अमेरिका की मुद्रा के साथ हेराफेरी का आरोप लगाया था। लेकिन सत्ता में आने के बाद ही उन्होंने अपने बयानों को बदल दिया और कहने लगे कि चीन अब ऐसा नहीं करता। ट्रम्प का यह बयान अमेरिका और चीन के व्यापार समझौतों और उत्तर कोरिया के संकट में चीन का झुकाव होने के कारण बदला गया। - ओबामाकेयर को हटाने में असफल होना:-
डोनाल्ड ट्रम्प ने राष्ट्रपति बनते ही ओबामाकेयर को रद्द करने का भर्षक प्रयास किया, लेकिन उनकी अपनी रिपब्लिकन पार्टी के भीतर ही समर्थन न मिलने के कारण उन्हें अपने बयानों से पीछे हटना पड़ा। इस विफलता ने उनके शुरुआती वादों और उनकी छवि को झटका दिया। - जिसमे सीरिया पर हमले का आदेश भी शामिल:-
डोनाल्ड ट्रम्प ने चुनाव से पहले कहा था कि अमेरिका को विदेशी युद्धों से बाहर ही रहना चाहिए। लेकिन चुनाव जीतने के बाद अप्रैल 2017 में उन्होंने सीरिया के एयरबेस पर मिसाइल से हमले कर दिये। इसे एक बड़ा नीति बदलाव कहा जाएगा। - ट्रम्प द्वारा फेडरल रिज़र्व चेयरजेनेट येलन के समर्थन में लिया गया यू-टर्न:-
डोनाल्ड ट्रम्प ने प्रचार के दौरान येलन की नीतियों की खुलकर आलोचना की थी, लेकिन जीतने के बाद में उन्होंने उन्हें अच्छा काम करने वाली बताया और उन्हें सत्ता में बनाए रखने का संकेत भी दिया। - ट्रम्प द्वारा एक्सपोर्ट-इंपोर्ट बैंक का समर्थन
पहले अमेरिका के राष्ट्रपति ने इसका खुलकर विरोध किया था, लेकिन बाद में उन्होंने इसे अमेरिकी कंपनियों के लिए सहायक करार दिया और इसके पुनर्गठन का भी खुलकर समर्थन किया। - नाटो छोडने की बात का खुलकर समर्थन:-
अमेरिका के राष्ट्रपति ने चुनाव प्रचार के दौरान नाटो को अप्रासंगिक व फिजूल करार दिया था। लेकिन राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने बयान दिया कि नाटो अब अप्रासंगिक नहीं है। यह यू-टर्न अंतरराष्ट्रीय दबाव के चलते और रूस की बढ़ती आक्रामक नीति को देखते हुए लिया गया।
अमेरिका के राष्ट्रपति द्वारा बदले गए फैसलों का कारण:-
- अमेरिकी राष्ट्रपति पर बढ़ता अंतरराष्ट्रीय दबाव:
विश्व के अन्य नेताओं में विशेष रूप से नाटो, चीन और संयुक्त राष्ट्र से मिलने वाले दबावों के कारण अमेरिका के राष्ट्रपति ने अपने रूख में बदलाव किया। - देश में बढ़ती आंतरिक प्रशासनिक अस्थिरता:-
अमेरिका के राष्ट्रपति के प्रशासन में शुरुआत से ही वरिष्ठ अधिकारियों में लगातार बदलाव देखने को मिले, जिससे नीतियों में निरंतरता देखने को नहीं मिली। - राष्ट्रपति में राजनीतिक अनुभव की कमी होना:-
उनकी व्यवसायिक शैली में निर्णय लेने की आदत होना और राजनीतिक संरचना को न समझने के कारण उन्हे कई बार जल्दबाज़ी में फैसले लेते और फिर आलोचना के बाद पीछे हटते देखा गया।
इसका निष्कर्ष:-
अमेरिका के राष्ट्रपति द्वारा 130 दिनों में 6 बड़े फैसलों का पलटना यह दिखाता है कि एक मजबूत, पारदर्शी और रणनीतिक सोच के बिना लिए गए निर्णय स्थायी नहीं होते। डोनाल्ड ट्रम्प की निर्णय-प्रणाली ने यह भी दिखा दिया कि भावनात्मक और जनप्रिय बयानों से सत्ता तो आसानी से हासिल की जा सकती है, लेकिन इतने बड़े देश का शासन चलाने के लिए ठोस नीति, अनुभव और संतुलित दृष्टिकोण की सबसे ज्यादा आवश्यकता होती है।
राष्ट्रपति के इन यू-टर्न्स ने जहां एक ओर उनकी नेतृत्व शैली की सीमाओं को खुलकर उजागर किया, वहीं अमेरिकी राजनीतिक तंत्र की आत्मसुधार करने की क्षमता और लोकतांत्रिक संस्थानों की ताकत को भी स्पष्ट रूप से प्रमाणित किया।
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