1965 की खदान दुर्घटना
वर्ष 1965 में धनबाद की कोयला खदान में हुआ था भीषण हादसा: एक भयंकर त्रासदी हुई और भविष्य में कैसे होगी खदान:-
परिचय:-
भारत के विकास और औद्योगिक प्रगति में कोयला एक विशेष स्थान रखता है। भारत में सबसे ज्यादा कोयला झारखंड के धनबाद जिले में पाया जाता है। धनबाद को भारत की कोयला राजधानी भी कहा जाता है। धनबाद देश की ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने में हमेशा अग्रणी रहा है। इस खनन के लंबे इतिहास में कई दर्दनाक घटनाएँ भी दर्ज हैं। ऐसी ही एक दर्दनाक दुर्घटना 27 दिसंबर 1965 को धनबाद के चासनाला क्षेत्र की एक कोयला खदान में घटित हुई थी, जिसमें सैकड़ों मजदूरों को अपनी जान देनी पड़ी थी। यह भयंकर हादसा भारत के औद्योगिक इतिहास की सबसे भीषण खदान दुर्घटनाओं में से एक माना जाता है।

झारखंड के धनबाद हादसे का विस्तृत विवरण (1965):-
वर्ष 1965 में धनबाद की धोरी कोलियरी में एक बहुत बड़ा विस्फोट हुआ था। यह भयंकर हादसा एक अंडरग्राउंड कोयला खदान में हुआ, जहाँ काफी बड़ी संख्या में मजदूर खदान का काम कर रहे थे। कोयला खदान में हुए विस्फोट का मुख्य कारण मिथेन गैस का जमाव होना और उसके कारण हुआ अचानक विस्फोट था। गैस का रिसाव समय पर न देख पाने और वेंटिलेशन की उचित व्यवस्था न हो पाने के कारण यह विस्फोट बहुत भयावह बन गया था।
इस भयानक दुर्घटना में लगभग 300 से अधिक मजदूरों की जान चली गयी थी। इनमें से बहुत मजदूरों के शव कई वर्षों तक खदान की गहराई में ही फंसे रहे क्योंकि रेस्क्यू करना अत्यंत कठिन हो गया था। इस हादसे ने पूरे देश को हिला कर रख दिया था और खनन सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए थे।
हादसे के कारण और लापरवाही पर एक नजर:-
इस त्रासदी के मुख्य कारण निम्नलिखित थे:-
- मिथेन गैस का बड़ी मात्रा में जमाव – किसी भी कोयला खदान में मिथेन गैस का निर्माण स्वाभाविक प्रक्रिया है, लेकिन यदि इसका उचित या सही प्रबंधन न हो तो यह विस्फोटक भी बन सकती है।
- खदान में उचित वेंटिलेशन की कमी होना – मीथेन गैस को बाहर निकालने के लिए पर्याप्त हवा की व्यवस्था नहीं थी।
- खदान में सुरक्षा नियमों की अनदेखी होना – वर्ष 1965 के समय खदानों में आधुनिक सुरक्षा उपकरणों और अलार्म सिस्टम्स की कमी थी।
- इंजीनियर के पास तकनीकी ज्ञान का अभाव – 1965 के समय खनिकों और प्रबंधन के पास पर्याप्त वैज्ञानिक जानकारी और उपकरण नहीं थे।
- प्रशासनिक लापरवाही का होना – खदान में समय रहते चेतावनी या निकासी की कोई योजना लागू नहीं की जा सकी।
भविष्य की राह: रोबोटिक खनन की ओर बढ़ती दुनिया:-
विश्व में खनन को सुरक्षित और प्रभावी बनाने के लिए अब रोबोटिक्स और ऑटोमेशन की ओर रुझान तेजी से बढ़ रहा है। भारत भी इस दिशा में अपने कदम आगे बढ़ा चुका है।
1. क्या है रोबोटिक खनन पद्धति ?
रोबोटिक खनन मुख्य अर्थ है, खनन प्रक्रियाओं में ऐसे स्वचालित रोबोट और मशीनों का ज्यादा से ज्यादा उपयोग करना जो बिना किसी इंसानी हस्तक्षेप के कोयला या अन्य खनिज को आसानी से निकाल सकें। इसमें मुख्य रूप से शामिल हैं:
- ऑटोमेटेड ड्रिलिंग मशीनें, जो इस कार्य को आसानी से कर सकती हैं।
- रिमोट कंट्रोल से चलने वाले एक्सवेटर जो इस प्रक्रिया को सरल बना देते हैं।
- AI आधारित निगरानी सिस्टम का होना।
- रोबोटिक आर्म्स और सेंसर्स का ज्यादा से ज्यादा उपयोग।
- GPS और LIDAR से लैस नेविगेशन तकनीक का बेहतर इस्तेमाल।
2. इसके लाभ पर एक नजर:-
- इसकी सुरक्षा में वृद्धि होना: खदान जैसे खतरनाक स्थानों पर इंसानों के स्थान पर रोबोट को आसानी से भेजा जा सकता है। इससे दुर्घटनाओं में तेजी से कमी आएगी।
- दिन रात 24/7 संचालन हो सकेगा: इंसान के बजाय रोबोट लगातार बिना थके काम कर सकते हैं, जिससे कम समय में उत्पादकता बढ़ेगी।
- सटीकता और कुशलता में वृद्धि: रोबोटिक मशीनें अधिक सटीकता से खनिज निकालती हैं, जिससे नुकसान कम होने का खतरा होता है।
- इस कार्य में डेटा-आधारित निर्णय का होना: AI आधारित रोबोट खनन का ज्यादा से ज्यादा उपयोग इन स्थितियों का विश्लेषण कर निर्णय लेने में सक्षम होते हैं।
निष्कर्ष:-
वर्ष 1965 की धनबाद खदान दुर्घटना ने हमें मुख्यतः यह सिखाया कि इंसान की सुरक्षा से बड़ा कोई मूल्य नहीं होता। उस भयंकर त्रासदी ने न केवल सैकड़ों परिवारों को उजाड़ा, बल्कि देश को यह भी सोचने पर मजबूर कर दिया कि तकनीकी प्रगति के बिना औद्योगिक विकास की कीमत मानव जीवन से ही चुकानी पड़ती है।
आज के युग में, जब तकनीक हमारे हर क्षेत्र में काफी आसानी से प्रवेश कर चुकी है, तो खनन जैसे जोखिमपूर्ण उद्योग में भी रोबोटिक्स और ऑटोमेशन को अपनाना बहुत आवश्यक हो गया है। रोबोटिक खनन न केवल इंसानी सुरक्षा सुनिश्चित करेगा, बल्कि उत्पादकता और पर्यावरणीय संतुलन में भी सही सहायक होगा।
भविष्य की खनन प्रक्रियाएँ तभी मानवीय रूप से सही कहलाएँगी, जब वे मानव जीवन की कीमत को अच्छे से समझें और उसे संरक्षित रखने की दिशा में उचित और तकनीकी उपायों को प्राथमिकता दें। उस त्रासदी से निकला यही सबसे बड़ा सबक हम इंसानी लोगों के लिए है।