नर्मदा बचाओ आंदोलन
मेधा पाटकर कौन हैं?
मेधा पाटकर एक प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता हैं, जो विशेष रूप से नर्मदा बचाओ आंदोलन के लिए प्रसिद्ध हैं। वे भारत में जल, जंगल, जमीन और विस्थापन जैसे मुद्दों पर आवाज़ उठाने वाली एक महत्वपूर्ण महिला हैं। उनका जन्म 1 दिसंबर 1954 को महाराष्ट्र के मुंबई में हुआ था। उन्होंने टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज़, मुंबई से समाज कार्य में अपनी मास्टर की डिग्री प्राप्त की। उन्होंने समाज सेवा के क्षेत्र में अपना जीवन समर्पित कर दिया था।

मेधा पाटकर ने सन 1980 के दशक में नर्मदा घाटी विकास परियोजना के विरोध में आंदोलन शुरू किया, जिसमें सरदार सरोवर बांध सहित कई बड़े बांधों का निर्माण भी शामिल था। इन बांधों के कारण हजारों लोगों को अपने घरों और जमीनों को छोडकर दूसरे स्थान पर विस्थापित होना पड़ा। मेधा पाटकर का तर्क था कि विकास के नाम पर गरीबों के अधिकारों का हनन किया जाना कहाँ का विकास है और उचित पुनर्वास के बिना यह परियोजनाएं सामाजिक न्याय के खिलाफ हैं।
मेधा पाटकर की मुख्य उपलब्धियां:
- नर्मदा बचाओ आंदोलन:- यह आंदोलन नर्मदा नदी पर जो बड़े-बड़े बांध बनाए जा रहे थे, उनके खिलाफ था। आंदोलन का मुख्य मुद्दा विस्थापन और पर्यावरणीय को हो रहे नुकसान के खिलाफ था।
- मेधा पाटकर को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मान: इन्हे कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिले; जैसे कि राइट लाइवलीहुड अवार्ड, जिसे वैकल्पिक नोबेल पुरस्कार भी कहा जाता रहा है।
- इनकी राजनीतिक भागीदारी: आम आदमी पार्टी से भी जुड़ाव रखा, हालांकि वे सक्रिय राजनीति से जल्दी ही बाहर भी आ गईं थी।
मेधा पाटकर और वी.के. सक्सेना के बीच क्या विवाद:
वी.के. सक्सेना वर्तमान में दिल्ली के उपराज्यपाल हैं। इससे पहले वे खादी और ग्रामोद्योग आयोग के भी अध्यक्ष थे। मेधा पाटकर और वी.के. सक्सेना के बीच का विवाद बहुत पुराना है, जो सन 2000 के दशक की शुरुआत में शुरू हुआ था और इस विवाद ने बाद में कानूनी मोड़ ले लिया।
विवाद की पृष्ठभूमि क्या है:
इस विवाद की जड़; नर्मदा बचाओ आंदोलन और इससे जुड़े दावों में है। वी.के. सक्सेना उस समय एक स्वयंसेवी संस्था राष्ट्रीय परिषद् फॉर सिविल लिबर्टीज़ के अध्यक्ष थे, जो मेधा पाटकर के आंदोलन पर कुछ सवाल उठा रही थी। वी.के. सक्सेना ने पाटकर पर आरोप लगाया था कि मेधा पाटकर और उनका संगठन विदेशों से चंदा ले रहे हैं और झूठे तथ्यों के आधार पर भारत में विकास परियोजनाओं को रोकने की पूरी कोशिश कर रहे हैं।
दोनों के बीच मुख्य विवाद:
- मानहानि मुकदमा:
- वर्ष 2000 में वी.के. सक्सेना ने मेधा पाटकर के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर कर दिया।
- इसके जवाब में मेधा पाटकर ने भी सक्सेना पर मानहानि का मुकदमा किया, जिसमें उन्होंने कहा कि सक्सेना ने उनके और उनके संगठन की छवि को नुकसान पहुँचाने का जघन्य प्रयास किया है।
- आरोप व प्रत्यारोप:
- वी.के. सक्सेना का मेधा पर आरोप था कि NBA विदेशी ताकतों का एजेंडा चला रहा है और यह देश के विकास में भी बाधा डाल रहा है।
- दूसरी ओर मेधा पाटकर का दावा था कि सक्सेना जैसी हस्तियाँ कार्पोरेट हितों की रक्षा के लिए प्रकृति से भी खिलवाड़ कर रही हैं और गरीबों के अधिकारों की अनदेखी भी की जा रही हैं।
- कानूनी कार्रवाई क्या रही:
- यह मामला कई वर्षों तक अदालत में चला। सन 2022 में; जब वी.के. सक्सेना को दिल्ली का उपराज्यपाल नियुक्त किया गया, तब यह विवाद फिर से चर्चा में आ गया था।
- मेधा पाटकर ने सरकार पर आरोप लगाया कि एक व्यक्ति, जो खुद उनके खिलाफ मानहानि के मामले में प्रतिद्वंदीम है; वह अब संवैधानिक पद पर बैठा है और मुझे विश्वास है कि न्याय निष्पक्ष नहीं हो सकता।
- राजनीतिक आरोप क्या लगे:
- विपक्षी दलों ने इस मामले को लेकर आवाज उठाई थी कि एक विवादित पृष्ठभूमि वाला व्यक्ति उपराज्यपाल जैसे गरिमापूर्ण पद पर कैसे बैठ सकता है।
- दूसरी ओर सरकार समर्थक लोगों ने इसे राजनीति से प्रेरित बताया।
विवाद के प्रभाव:
- सिविल सोसाइटी व राज्य के बीच संबंध:
- यह विवाद नागरिक समाज और सरकार के बीच के तनाव को दर्शाता है।
- एक ओर एनजीओ और सामाजिक कार्यकर्ता जनहित के मुद्दों को सरकार के सामने उठाते हैं, वहीं राज्य की संस्थाएं कभी-कभी इन्हें विकास विरोधी बना देती हैं।
- मीडिया और समाज का जनमत:
- इस विवाद को मीडिया ने काफी उठाया, जिससे लोगों में सामाजिक आंदोलनों की चेतना और उनकी भूमिका को लेकर संवाद शुरू किया गया।
- न्यायपालिका की भूमिका:
- यह मुद्दा कई वर्षों तक अदालतों में चला, जिससे न्यायिक प्रणाली की गति और प्रभावशीलता को लेकर भी सवाल उठने लाज़मी है।
निष्कर्ष:-
मेधा पाटकर और वी.के. सक्सेना के बीच जो विवाद है वह केवल दो व्यक्तियों के बीच का विवाद नहीं कहा जा सकता, बल्कि यह आपसी विमर्श का हिस्सा भी है जिसमें विकास, पर्यावरण, सामाजिक न्याय, नागरिक स्वतंत्रता के साथ-साथ राज्य की भूमिका जैसे कई मुद्दे को भी उठाता हैं।
मेधा पाटकर को उनके कार्यों के लिए जितनी सराहना मिली, उतना ही विरोध भी झेलना पड़ा। वहीं दूसरी ओर वी.के. सक्सेना को एक प्रशासनिक अधिकारी के रूप में नई पहचान मिली, लेकिन उनका अतीत और विवादित बयान उनकी छवि पर असर डालते रहे हैं।
https://www.bbc.com/hindi/regionalnews/story/2006/04/060417_medha_breaks_fast