पंजाब हरियाणा पानी विवाद
पंजाब हरियाणा पानी विवाद:-
पानी विवाद:- पंजाब और हरियाणा के बीच पानी को लेकर लंबे समय से विवाद चला आ रहा है, जिसका मूल कारण भारत के विभाजन, भारतीय राज्यों के पुनर्गठन और नदी जल बटवारे के समझौतों में छिपी हैं। हाल ही में पंजाब राज्य द्वारा भाखड़ा बांध से हरियाणा और दिल्ली को पानी की आपूर्ति कम करने के फैसले ने विवादको एक बार फिर से बढ़ा दिया है। यह विवाद केवल क्षेत्रीय राजनीति को ही प्रभावित नहीं करता है बल्कि किसानों और राज्यों के आम नागरिकों के जीवन को भी सीधे तौर पर प्रभावित करता रहा है। पंजाब और हरियाणा पानी विवाद की वजह भाखड़ा नागल बांध परियोजना है जिसे आगे विस्तार से जानेगे।
पंजाब की भाखड़ा बांध परियोजना का इतिहास:-
भाखड़ा नांगल बांध परियोजना भारत देश की सबसे पुरानी और बड़ी बहुउद्देश्यीय जल विद्धुत परियोजनाओं में से एक है। पंजाब की यह परियोजना सतलुज नदी पर स्थित है जो हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में स्थित है। भाखड़ा नांगल बांध परियोजना का निर्माण स्वतंत्रता के बाद भारत के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू के कार्यकाल में शुरू हुआ था। भाखड़ा बांध सन 1963 में बनकर तैयार हुआ था और इसका प्रथम उद्देश्य सिंचाई, बिजली उत्पादन और बाढ़ नियंत्रण करना था।

इस बांध के प्रमुख तथ्य:-
- इस बांध की ऊँचाई 226 मीटर है जो लगभग 741 फीट के बराबर है।
- इस जलाशय का नाम गोविंद सागर है।
- इसका प्रमुख उद्देश्य सिंचाई, जल आपूर्ति, हाइड्रोपावर उत्पादन आदि है।
भाखड़ा नांगल बांध परियोजना से पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली और हिमाचल प्रदेश आदि राज्यों को पानी की आपूर्ति होती है। पंजाब की इस परियोजना का प्रबंधन भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (BBMB) द्वारा किया जाता है, जिसकी स्थापना सन 1976 में की गयी थी।
पंजाब और हरियाणा जल विवाद की पृष्ठभूमि के बारे में कुछ तथ्य:-
सन 1966 में पंजाब पुनर्गठन अधिनियम के तहत हरियाणा राज्य को अलग किया गया था। चूंकि हरियाणा राज्य हिन्दी भाषी था इसलिए पुंजाबी भाषा के लिए पंजाब राज्य से अलग होकर नया राज्य बना, इसलिए दोनों राज्यों के बीच सतलुज-यमुना लिंक नहर और जल बंटवारे को लेकर शुरू से ही विवाद शुरू हो गया। पंजाब का शुरू से यहीं तर्क है कि वह पहले ही जल संकट से बुरी तरह से जूझ रहा है इसलिए सतलुज तथा ब्यास नदियों का जल केवल पंजाब को ही मिलना चाहिए, जबकि हरियाणा का दावा है कि उन्हें उनका कानूनी और संवैधानिक हिस्सा हरियाणा को ही मिलना चाहिए।
दोनों राज्यों के प्रमुख विवादास्पद बिंदु:
- सतलुज-यमुना लिंक नहर: इस नहर का निर्माण हरियाणा को सतलुज और ब्यास नदियों का जल पहुंचाने के लिए किया गया था। पंजाब ने इस नहर के निर्माण का विरोध किया था और वह विरोध आज तक जारी है।
- दोनों राज्यों के जल वितरण समझौते: सन 1955 और 1981 में हुए समझौतों में दोनों राज्यों का जल बांटकर हरियाणा को जल आवंटित किया गया, लेकिन पंजाब ने इन समझौतों को यह कहते हुए स्वीकार नहीं किया था कि वे अन्यायपूर्ण निर्णय हैं।
दोनों राज्यों का हालिया विवाद: पानी की आपूर्ति में कटौती:-
2024 के अंत और 2025 की शुरुआत में, पंजाब सरकार ने अपना दावा किया कि राज्य में जल स्तर काफी गिर चुका है और भूमिगत जल का दोहन लगातार बढ़ रहा है जिसके चलते पंजाब ने हरियाणा को भाखड़ा नांगल परियोजना से दी जाने वाली पानी की मात्रा में कटौती करनी शुरू कर दी। हरियाणा ने इसका विरोध करते हुए इसे अनुचित करार दिया और अन्यायपूर्ण निर्णय भी बताया और केंद्र सरकार से हस्तक्षेप करने की मांग की।
हरियाणा राज्य का दावा है कि यह कटौती उनके किसानों को प्रभावित कर सकती है, खासकर गेहूं और धान जैसी जल-आधारित फसलों की सिंचाई के लिए ज्यादा से ज्यादा पानी की आवश्यकता है। पंजाब का कहना है कि उसके खुद के क्षेत्रों में जल संकट गहरा रहा है इसलिए वह अतिरिक्त जल की आपूर्ति नहीं कर सकता।
दोनों राज्यों का कानूनी और संवैधानिक पक्ष:-
पानी विवाद सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुका है। 2004 में पंजाब सरकार ने पंजाब टर्मिनेशन ऑफ एग्रीमेंट्स एक्ट पारित कर दिया जिससे सभी जल समझौतों स्वत ही रद्द हो गए, जिसे हरियाणा ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी और दोनों राज्य आज भी उसी मुद्दे पर झगड़ रहे हैं। 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून को असंवैधानिक करार दिया, लेकिन वर्तमान समय तक भी इसका क्रियान्वयन नहीं हो पाया है।
केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट दोनों इस विवाद को सुलझाने का लगातार प्रयास कर रहे हैं लेकिन पंजाब सरकार की राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी और स्थानीय विरोध के चलते राज्य सरकार कोई भी ठोस समाधान नहीं निकल पा रही है।
दोनों राज्यों के सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव:-
यह जल विवाद केवल दो राज्यों के बीच जल के बंटवारे तक सीमित नहीं है बल्कि इसका सीधा असर कृषि, रोजगार और क्षेत्रीय राजनीति पर भी लगातार पड़ रहा है। जैसे:-
पंजाब में:
- पंजाब राज्य का भूमिगत जलस्तर लगातार गिर रहा है क्योंकि वहाँ का फसल चक्र ही कुछ इस प्रकार है जिसमे पानी की बहुत ज्यादा आवश्यकता होती है।
- पंजाब के किसान अधिक पानी वाली फसलों जैसे चावल पर निर्भर हैं, जिससे स्थिति और खराब हो रही है।
हरियाणा में:
- हरियाणा में किसान समय पर सिंचाई न मिलने से काफी परेशान हैं क्योंकि जलस्तर ज्यादा ठीक नहीं और जिस कारण हरियाणा भी नदी परियोजना पर ही निर्भर रहता है।
- पंजाब द्वारा जल आपूर्ति में कमी से हरियाणा के ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल संकट भी उत्पन्न हो रहा है जो बहुत दुखद स्थिति है।
दोनों राज्यों का राजनीतिक दृष्टिकोण:
यह मुद्दा दोनों राज्यों में चुनावों से पहले एक बड़ा राजनीतिक हथियार बन जाता है। हरियाणा की पार्टियाँ पंजाब पर जल आपूर्ति रोकने का आरोप लगाकर वोट बैंक मजबूत करने की कोशिश करती हैं, वहीं पंजाब की पार्टियाँ राज्य के हितों की रक्षा के नाम पर जल वितरण समझौतों का विरोध करती हैं।
दोनों राज्यों के बीच समाधान की संभावनाएं कितनी:-
- दोनों राज्यों का नया जल वितरण समझौता: सभी हितधारकों को साथ लेकर एक नया न्यायसंगत और वैज्ञानिक आधार पर आधारित जल समझौता किया जाना चाहिए जिससे राज्यों में आपसी विवाद न हो।
- राज्यों का वाटर ऑडिट और जल प्रबंधन: दोनों राज्यों को जल का उपयोग दक्षता के साथ करना चाहिए। सूक्ष्म सिंचाई तकनीकों जैसे ड्रिप और स्प्रिंकलर का उपयोग बढ़ाने की भी आवश्यकता है।
- राज्यों की राजनीतिक इच्छाशक्ति: केवल न्यायालय के आदेश पर्याप्त से ही कुछ नहीं होगा, उसके लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति और जन समर्थन की भी आवश्यक है।
- विवाद सुलझाने के लिए केंद्र सरकार की मध्यस्थता: केंद्र को इस विवाद में निष्पक्ष भूमिका निभानी चाहिए ताकि सही न्याय हो सके और एक स्थायी समाधान की दिशा में कदम उठाए जाने चाहिए।
इसका निष्कर्ष क्या होना चाहिए?
पंजाब और हरियाणा दोनों राज्यों का पानी विवाद केवल जल वितरण का ही प्रश्न नहीं है बल्कि यह संसाधनों के न्यायसंगत उपयोग और राज्यों के बीच सहयोग के साथ साथ टिकाऊ विकास का भी मामला है। भाखड़ा बांध जैसी परियोजनाएं जब बनी थीं तभी देश के बुद्धिजीवियों को इस दिशा में सही कदम उठाने की आवश्यकता थी। वैसे देखा जाये तो उस समय देश के सामने कृषि और बिजली के लिए बड़े समाधानों की जरूरत थी। आज आवश्यकता है कि उन परियोजनाओं को नई परिस्थितियों के अनुरूप समायोजित किया जाना चाहिए।
जब तक दोनों राज्य यानि पंजाब और हरियाणा एक-दूसरे की ज़रूरतों और समस्याओं को समझते हुए परस्पर सहयोग नहीं करेंगे, तब तक इस विवाद का कोई स्थायी हल या समाधान निकालना उतना भी संभव नहीं है। जल जैसे सीमित संसाधन पर राजनीतिक टकराव की जगह मिल-जुलकर समाधान निकालना ही सभी के हित में है ताकि विवाद के बजाय सरकार को अपनी शक्ति का उपयोग सही दिशा में करना चाहिए।
पंजाब और हरियाणा के बीच पानी के विवाद को लेकर यह लेख बहुत ही जानकारीपूर्ण है। यह स्पष्ट है कि यह मुद्दा सिर्फ राजनीतिक नहीं है, बल्कि यह आम लोगों के जीवन को सीधे प्रभावित करता है। भाखड़ा नांगल बांध परियोजना का इतिहास और इसके महत्व को समझाने के लिए लेखक ने अच्छा प्रयास किया है। हालांकि, यह सवाल उठता है कि क्या इस विवाद का कोई स्थायी समाधान संभव है? मेरी राय में, दोनों राज्यों को आपसी सहमति से काम करना चाहिए ताकि यह समस्या हल हो सके। क्या आपको नहीं लगता कि इस मामले में केंद्र सरकार को भी हस्तक्षेप करना चाहिए? इस विवाद के पीछे के ऐतिहासिक और कानूनी पहलुओं को और गहराई से समझने की आवश्यकता है। क्या आप इस बारे में और जानकारी साझा कर सकते हैं?
मै इस मुद्दे का ओर भी गहन से अध्ययन कर रहा हूँ। साथ ही देश भर में राज्यों के बीच चल रहे जल बटवारे को लेकर जो विवाद हैं उनका क्या निष्कर्ष होना चाहिए। जल्द ही इस बात का भी उत्तर आपको दूंगा।