बांग्लादेश में राजनीतिक संकट का इतिहास बहुत पुराना है, वर्ष 1975 के तख्तापलट में मारे गए थे शेख हसीना के पिता, 2024 में देश छोड़कर भागीं शेख हसीना। जाने विस्तार से।
बांग्लादेश का राजनीतिक संकट:-
भारत का पड़ोसी बांग्लादेश इस समय एक गहरे व अस्थिर राजनीतिक संकट से गुजर रहा है, जिसकी जड़ें वर्ष 2024 में हुए छात्र संगठनों के आंदोलन और सरकार के दमनात्मक रवैये से जुड़ी हैं। इस राजनीतिक संकट ने देश की राजनीतिक व्यवस्था, अर्थव्यवस्था और सामाजिक व्यवस्था को झकझोर कर रख दिया है।
1. कोटा आंदोलन और जुलाई क्रांति पर एक नजर:-
वर्ष 2024 में बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी नौकरियों में कोटा प्रणाली को 30% बहाल करने का निर्णय लिया, जिससे छात्रों के बीच व्यापक असंतोष फैल गया था। छात्रों का मानना था कि यह प्रणाली योग्यता के आधार पर अवसरों को सीमित करती है। छात्रों के इस असंतोष ने “Students Against Discrimination” के नेतृत्व में एक मजबूत आंदोलन का रूप ले लिया था, जिसे “जुलाई क्रांति” के नाम से भी जाना गया। यह आंदोलन धीरे-धीरे पूरे देश में सरकार के खिलाफ एक जन-विद्रोह में बदल गया, जिसमें बांग्लादेश में लोकतंत्र की बहाली और मानवाधिकारों की रक्षा की मांग की गई।
2. दमन और हिंसा:-
बांग्लादेश सरकार ने आंदोलन को कुचलने के लिए कठोर से कठोर कदम उठाए जिसमे शिक्षण संस्थानों को बंद कर दिया गया साथ ही इंटरनेट सेवाएं निलंबित कर दी गईं। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को कुछ समय के लिए ब्लॉक कर दिया गया। सरकारी बलों, पुलिस, रैपिड एक्शन बटालियन और बॉर्डर गार्ड बांग्लादेश को विद्रोही आंदोलन के खिलाफ तैनात किया गया। इसके अलावा, सत्तारूढ़ पार्टी की छात्र शाखा “छात्र लीग” और अन्य संगठनों ने भी प्रदर्शनकारियों पर हमला शुरू कर दिया। इन कार्रवाइयों के कारण सैकड़ों लोग मारे गए और हजारों घायल हुए। हजारों को गिरफ्तार भी किया गया।
3. प्रधानमंत्री पद से शेख हसीना का इस्तीफा और मुहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार का गठन:-
बांग्लादेश में 5 अगस्त 2024 को, प्रधानमंत्री शेख हसीना ने अपना इस्तीफा दे दिया और भारत में आकर शरण ली। उनके इस्तीफे देने के बाद, राष्ट्रपति मोहम्मद शाहबुद्दीन ने सरकार गिरने के कारण संसद को भंग कर दिया। सेना प्रमुख जनरल वाकर-उज़-ज़मान ने एक अंतरिम सरकार के गठन की घोषणा स्वयं की, जिसका नेतृत्व नोबेल पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस द्वारा किया गया। इस सरकार में 16 सलाहकार शामिल हुए, जिनमें दो छात्र प्रतिनिधि संगठन भी हैं।
4. बांग्लादेश में अंतरिम सरकार की मुख्य चुनौतियाँ:-
मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार को बांग्लादेश में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है; जैसे:-
- राजनीतिक अस्थिरता का होना: पड़ोसी देश में पूर्व सत्तारूढ़ पार्टी अवामी लीग पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया है और इसके नेताओं के खिलाफ “ऑपरेशन डेविल हंट” के तहत कार्रवाई की जा रही है उन्हे जेल में डाला जा रहा है।
- आर्थिक संकट का होना: देश में मुद्रास्फीति की दर 12 साल के उच्चतम स्तर 11.66% पर पहुंच चुकी है, जिससे आम जनता पर लगातार आर्थिक दबाव बढ़ रहा है।
- बांग्लादेश में संवैधानिक सुधार: छात्र और नागरिक समूहों ने पाँच मांग सरकार के सामने रखी, जिसमें वर्ष 1972 के संविधान को हमेशा के लिए समाप्त करने और एक नई लोकतांत्रिक व्यवस्था जो बांग्लादेश के लिए सही हो स्थापित करने की मांग शामिल है।
5. बांग्लादेश का क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव:-
बांग्लादेश के राजनीतिक संकट का क्षेत्रीय स्तर व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी काफी गहरा प्रभाव पड़ा है:
- पड़ोसी देश पर भारत की प्रतिक्रिया: भारत ने शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग पर प्रतिबंध को लेकर अपनी चिंता व्यक्त की है और बांग्लादेश में लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की फिर से बहाली को लेकर अपनी अपील की है।
- पाकिस्तान के राजदूत का अचानक अवकाश: पाकिस्तान के उच्चायुक्त सैयद अहमद मारूफ ने अचानक अवकाश लेकर बांग्लादेश के ढाका को छोड़ दिया, जिससे कूटनीतिक हलकों में भी अटकलें तेज हो गई हैं।
6. बांग्लादेश के भविष्य की राह
पड़ोसी देश के सामने अब कई महत्वपूर्ण प्रश्न खड़े हो गए हैं:
- देश में चुनावों का आयोजन: क्या अंतरिम सरकार वर्ष 2026 तक चुनावों का आयोजन फिर से करा पाएगी?
- देश में संवैधानिक सुधार: क्या देश एक नए संविधान की ओर बढ़ सकता है, या वर्तमान व्यवस्था में ही सुधार किए जा सकते हैं।
- देश का राजनीतिक समावेशन: क्या अवामी लीग और अन्य प्रतिबंधित दलों को फिर से राजनीतिक प्रक्रिया में शामिल किया जा सकता है?
इसका निष्कर्ष:-
पड़ोसी देश अब एक निर्णायक मोड़ पर खड़ा हो गया है। छात्र आंदोलन ने शेख हसीना की सत्तारूढ़ सरकार को गिरा दिया है, लेकिन अब देश को स्थिरता, लोकतंत्र और आर्थिक विकास की दिशा में आगे बढ्ने की आवश्यकता होगा। इसके लिए देश के सभी पक्षों को एक साथ मिलकर काम करना चाहिए, ताकि बांग्लादेश एक समावेशी और लोकतांत्रिक राष्ट्र के रूप में उभरकर सामने आ सके।
