बीमा संशोधन विधेयक 2025: संसद के मानसून सत्र में पेश हो सकता है प्रस्ताव और इसके होने वाले संभावित प्रभाव:-

बीमा संशोधन विधेयक की प्रस्तावना:
भारत की जो वर्तमान बीमा प्रणाली है, वह नागरिकों की वित्तीय सुरक्षा का विश्वास दिलाने के लिए मुख्य रूप से कार्य करती है। सरकार द्वारा समय-समय पर संशोधित की जाती रही है ताकि बदलते सामाजिक, आर्थिक और तकनीकी परिदृश्य में इस प्रणाली को ओर अधिक उपयोगी बनाया जा सके। वर्ष 2025 के मानसून सत्र में, केंद्र सरकार द्वारा एक महत्त्वपूर्ण विधेयक पेश किया गया है, जिसे बीमा संशोधन विधेयक नाम संसद में पेश किया जाना प्रस्तावित हुआ है। यह विधेयक बीमा क्षेत्र से जुड़े तीन प्रमुख कानूनों; 1. बीमा अधिनियम 1938, 2. भारतीय जीवन बीमा निगम अधिनियम 1956 और 3. जनरल इंश्योरेंस बिजनेस (नेशनलाइजेशन) अधिनियम 1972 में व्यापक संशोधन का प्रस्ताव किया जाता है।
बीमा संशोधन विधेयक की प्रमुख विशेषताओं; संभावित प्रभावों, सरकार की मंशा, आलोचनात्मक दृष्टिकोण और इससे संबंधित सामाजिक-आर्थिक पहलुओं का विस्तृत विश्लेषण करता है।
1. बीमा संशोधन विधेयक की पृष्ठभूमि पर एक नजर:-
बीमा क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण भाग है। इस क्षेत्र का निजीकरण वर्ष 1999 में बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (IRDAI) की स्थापना के समय हुआ। बाद में विदेशी निवेश और निजी कंपनियों के प्रवेश से यह क्षेत्र लगातार आगे बढ़ता गया। लेकिन बीमा कानूनों में कई प्रावधान अभी भी बहुत पुराने हैं, जो मौजूदा समय की बदलने की मांग है।
सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में FDI सीमा बढ़ाने जैसे कुछ संशोधन किए हैं जो इस प्रकार हैं; वर्ष 2021 में FDI सीमा 49% से बढ़ाकर 74% की गई थी, लेकिन संरचनात्मक सुधार की दिशा में यह विधेयक एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
2. बीमा संशोधन विधेयक की प्रमुख विशेषताओं पर एक नजर:-
(क) बीमा व्यवसाय शुरू करने की प्रक्रिया को सरल बनाने हेतु:
वर्तमान कानूनों के अनुसार, भारतीय बीमा कंपनियों को लाइसेंस प्राप्त करने के लिए जटिल प्रक्रियाओं का सामना करना पड़ता है। नए विधेयक में लाइसेंस प्रक्रिया को सरल और पारदर्शी बनाने की बात की गई है।
(ख) न्यूनतम पूंजी आवश्यकताओं में लचीलापन होना:
वर्तमान में बीमा कंपनियों के लिए न्यूनतम पूंजी सीमा निर्धारित की हुई है; जैसे ₹100 करोड़ जीवन बीमा कंपनियों के लिए निर्धारित है। प्रस्तावित विधेयक में IRDAI को यह शक्ति दी जाएगी कि वह जरूरत के मुताबिक न्यूनतम पूंजी निर्धारित कर सके।
(ग) माइक्रो-बीमा, विशेष बीमा और कैप्टिव बीमा की अनुमति के अनुसार:
छोटे व्यवसायों और ग्रामीण क्षेत्रों के लिए विशेष रूप से अलग योजनाओं को बढ़ावा देने का प्रावधान किया जाएगा। इसके अलावा बीमा “जहाँ कोई कंपनी अपने जोखिम को स्वयं बीमा करती है” को भी मान्यता देने का प्रस्ताव किया गया है।
(घ) डिजिटल बीमा सेवाओं को प्रोत्साहन देना:
डिजिटलीकरण को बढ़ावा देना और स्टार्टअप्स के लिए अलग ढांचा विकसित करने की भी बात की गई है।
(ङ) विदेशी निवेश नियमों में संशोधन की संभावना के अनुसार:
हालांकि विधेयक का अंतिम प्रारूप अभी सार्वजनिक नहीं हुआ है, लेकिन यह संभावना जताई जा रही है कि विदेशी बीमा कंपनियों को और अधिक अधिकार दिए जा सकते हैं, जिससे प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी।
3. बीमा संशोधन विधेयक पर सरकार की मंशा पर एक नजर:
सरकार का उद्देश्य बीमा क्षेत्र में “Ease of Doing Business” को बढ़ावा देना है, साथ ही निवेश को आकर्षित करना और आम नागरिकों के लिए बीमा को सुलभ बनाना भी सरकार का उद्देश्य है। वर्तमान में भारत में बीमा की पहुंच जीडीपी के मुकाबले मात्र 4% ही है, जो वैश्विक औसत से काफी कम रही है। सरकार चाहती है कि बीमा सेवाएं सुदूर ग्रामीण और वंचित क्षेत्रों तक पहुँच सके, जिसके लिए नए खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करना भी आवश्यक है।
4. बीमा संशोधन विधेयक के संभावित प्रभाव पर एक नजर:
(क) सकारात्मक प्रभाव का असर:
- प्रतिस्पर्धा में वृद्धि: निजी और विदेशी कंपनियों की आसान एंट्री से बीमा सेवा की गुणवत्ता में सुधार होगा।
- बीमा उत्पादों में होने वाली विविधता: ग्राहकों को अधिक से अधिक विकल्प मिलेंगे।
- रोज़गार के अवसर खुलेंगे: नए व्यवसाय मॉडल से युवाओं के लिए रोजगार के अवसर बढ़ेंगे।
- डिजिटल नवाचार को बढ़ावा मिलेगा: तकनीक आधारित सेवाएं तेज़ी से विकसित की जाएंगी।
(ख) नकारात्मक प्रभाव या चिंताओं से होने वाला असर:
- सरकारी बीमा कंपनियों पर पड़ने वाला दबाव: LIC और अन्य PSU बीमा कंपनियों को निजी कंपनियों में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी।
- ग्रामीण क्षेत्रों की होती अनदेखी: निजी कंपनियाँ ध्यान केवल लाभप्रद क्षेत्रों पर केंद्रित होगा।
- उपभोक्ता संरक्षण की बढ़ती चिंता: अधिक प्रतिस्पर्धा के चलते गलत वादों और फ्रॉड होने की संभावना बढ़ेगी।
5. बीमा संशोधन विधेयक का आलोचनात्मक दृष्टिकोण पर एक नजर:
कुछ विशेषज्ञों और श्रमिक संगठनों ने इस विधेयक पर अपनी चिंता जाहिर की है। उनका मानना है कि इस विधेयक से सार्वजनिक क्षेत्र की बीमा कंपनियों का corporatization व privatization का रास्ता साफ होता है। LIC जैसी कंपनी जो वर्षों से देश के आम नागरिकों का विश्वास जीत चुकी हैं, उनके अस्तित्व पर भी गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।
विदेशी कंपनियों को अधिक स्वतंत्रता देने से होने वाला लाभ देश से बाहर जा सकता है और गरीब व ग्रामीण उपभोक्ताओं के हितों की अनदेखी भी हो सकती है।
6. बीमा संशोधन विधेयक का सामाजिक व आर्थिक पहलू पर एक नजर:-
बीमा एक सामाजिक सुरक्षा संस्था है, जो भारत जैसे विकासशील देश में इसकी भूमिका महज़ वित्तीय सुरक्षा तक सीमित नहीं है बल्कि यह सामाजिक न्याय, आर्थिक स्थिरता और आपदा प्रबंधन का भी एक महत्वपूर्ण साधन है।
7. निष्कर्ष:
यह विधेयक यदि अच्छी नियत से पारित होता है, तो यह क्षेत्रीय संतुलन, नवाचार, वित्तीय समावेशन और आर्थिक विकास में एक मील का पत्थर साबित होगा। इसके साथ-साथ यह भी सुनिश्चित किए जाने की आवश्यकता है। आम उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित हो, सरकारी बीमा कंपनियों की भूमिका सुरक्षित रहनी चाहिए और बीमा को लाभ नहीं होता है, बल्कि इसे सेवा के रूप में भी देखा जाना चाहिए।