यूपी के इटावा में ब्राह्मण बनाम यादव
यूपी के इटावा में ब्राह्मण बनाम यादव संघर्ष कौन चाहता है और किसे होगा राजनीतिक फायदा:-
उत्तर प्रदेश भारत का सबसे अधिक जनसंख्या वाला राज्य है और यहाँ की जातिगत राजनीति सीटों के दृष्टिकोण से पूरे देश की राजनीतिक दिशा तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रही है। यहाँ ब्राह्मण और यादव दो प्रभावशाली समुदायों में से एक हैं। एक ओर ब्राह्मण जाति, जो परंपरागत रूप से भाजपा का समर्थन करते रहे हैं और वहीं दूसरी ओर यादव जाति, जो सपा यानि समाजवादी पार्टी के प्रमुख वोटबैंक में से एक है।

22 जून को एक ऐसी घटना हुई जिसे देखकर लगता है कि यूपी की राजनीति में ब्राह्मण बनाम यादव संघर्ष को हवा देने की भरपूर कोशिशें की जा रही हैं। सवाल यह भी बनता है कि आखिर कौन इस टकराव को भड़काने की कोशिश कर रहा है और क्यों? इसका मकसद क्या हो सकता है? और इससे किसे राजनीतिक दल को ज्यादा फायदा हो सकता है?
1. यूपी में ब्राह्मण और यादव समुदाय की राजनीतिक पृष्ठभूमि पर एक नजर:-
ब्राह्मण जाति– उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण समुदाय की आबादी लगभग 10-12% के बीच मानी जाती है। यह जाति शिक्षित, प्रभावशाली और परंपरागत रूप से सत्ता के नजदीक रहा वर्ग मानी जाती है। भाजपा की राजनीति में ब्राह्मणों की भूमिका सबसे ज्यादा मजबूत रही है। हालांकि, कभी-कभी इस वर्ग को भी यह महसूस होता रहा है कि उसकी उपेक्षा हो रही है। खासकर जब भाजपा ने OBC या दलित वोटबैंक को साधने के लिए अपनी रणनीति में बदलाव किया।
यादव जाति– यादव समुदाय; यूपी का लगभग 8-10% है और यह सपा का मुख्य सामाजिक के साथ-साथ वोटबैंक भी है। मुलायम सिंह यादव और उनके बेटे अखिलेश यादव ने इस जाति को राजनीतिक रूप से अपनी ओर संगठित किया। सपा की राजनीतिक छवि यादव पार्टी की बनी और यह वोटबैंक उसे लंबे समय से मजबूती देता आ रहा है।
2. क्यों उभर रहा है ब्राह्मण बनाम यादव का मुद्दा ?
यूपी में ब्राह्मण बनाम यादव का संघर्षीय मुद्दा कोई नया विषय नहीं है, लेकिन साक 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद और साल 2027 के विधानसभा चुनाव की तैयारी में लगता है यह मुद्दा फिर से चर्चा में आएगा। इसके पीछे कुछ महत्वपूर्ण कारण हैं:
- यूपी में राजनीतिक दलों की रणनीति: यूपी में कुछ दल जानबूझकर यह नैरेटिव गढ़ना में लगें हैं कि यादवों द्वारा ब्राह्मणों के साथ हिंसा की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। इसका मुख्य उद्देश्य ब्राह्मण समुदाय को एकजुट करके अपने पक्ष में लामबंद करना है।
- स्थानीय घटनाएं और मीडिया में उछाल होना: कुछ जिलों में ब्राह्मण युवकों की हत्या होना या पुलिस द्वारा कार्रवाई को जातिगत रंग देने की भरपूर कोशिश की गई। सोशल मीडिया पर इन्हें यादव बनाम ब्राह्मण संघर्ष की तरह दिखाया गया।
- यूपी में सपा-भाजपा द्वंद्व का होना: भाजपा यह नैरेटिव जमाना चाहती है कि जब सपा सत्ता में होती है, तो यादव अपनी दबंगई करते हैं और ब्राह्मणों पर अत्याचार बढ़ जाता है। वहीं सपा अपना पूरा प्रयास कर रही है कि ब्राह्मणों को भाजपा से नाराज़ किया जाये और अपने पाले में लाया जाए।
3. यूपी में कौन चाहता है यह संघर्ष बढ़ाना ?
(i) यूपी में सत्ताधारी भाजपा का दृष्टिकोण:-
पिछले कुछ समय से भाजपा ने पिछड़े वर्गों और दलितों के साथ सवर्णों को भी अपने पाले में साधा है, लेकिन ब्राह्मणों में यह धारणा लगातार बन रही है कि योगी सरकार में ठाकुरवाद ज्यादा होता है। ऐसे में यदि ब्राह्मण यादवों के खिलाफ होते हैं, तो भाजपा को यह नैरेटिव मजबूत करने का सीधा मौका मिल सकता है कि सपा के शासन में कानून व्यवस्था यादव केंद्रित हो जाती है। इससे ब्राह्मण 100 % भाजपा की शरण में वापस लौट सकते हैं।
(ii) यूपी में समाजवादी पार्टी की रणनीति पर एक नजर:-
सपा को इस बात की पूर्ण समझ है कि यदि ब्राह्मणों को भाजपा से नाराज़ दिखाने में सफल हुए और उन्हें अपने पाले में लाया जाए, तो एक नया यादव-ब्राह्मण गठबंधन बन सकता है, जैसा कि मायावती ने साल 2007 में दलित-ब्राह्मण समीकरण बना कर अपनी सत्ता पा ली थी। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव भी ब्राह्मण सम्मेलन, शंखनाद यात्रा और परशुराम की प्रतिमाएं स्थापित कर यह दिखाने में लगें हैं कि वह उनके हितेशी हैं।
(iii) यूपी में बाहरी शक्तियाँ व सोशल मीडिया ट्रोल गैंग्स की क्रियाशीलता:-
पिछले कुछ समय से देखा जाये तो कुछ मामलों में असामाजिक तत्व सोशल मीडिया पर फर्जी खबरें दिखाने में लगें हैं या अर्ध-सत्य घटनाएं उछालने का भरसक प्रयास कर रहे हैं ताकि जातीय तनाव को बढ़ावा मिल सके। ऐसे तत्वों का मुख्य उद्देश्य किसी विशेष दल को लाभ पहुंचाना या क्षेत्रीय अशांति को बढ़ावा देना होता है।
4. किस पार्टी को होगा राजनीतिक फायदा?
- यदि ब्राह्मणों में यह डर अच्छे से बैठा दिया जाए कि सपा के शासन में यादव वर्चस्व से उनका काफी दमन होता है, तो ब्राह्मण फिर भाजपा की ओर लौट सकते हैं, जिससे आने वाले चुनाव में भाजपा को लाभ होगा।
- चुनाव से पहले भाजपा यह नैरेटिव फैलाने की कोशिश कर सकती है कि सपा के शासन में यादव राज होगा और ब्राह्मणों की उपेक्षा होग
यूपी के इटावा में जातीय संघर्ष
5. जनता के लिए क्या खतरा होगा ?
जातिगत संघर्ष का सबसे ज्यादा नुकसान आम जनता को होता है। चाहे वह ब्राह्मण हो, यादव हो, दलित हो या कोई समुदाय हो। असली मुद्दे जैसे बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य, महंगाई, कानून व्यवस्था को दबाया जा सकता है।
इसका निष्कर्ष:
यूपी में ब्राह्मण बनाम यादव संघर्ष को हवा देना एक रणनीतिक व राजनीतिक चाल हो सकती है। कुछ राजनीतिक शक्तियाँ इस संघर्ष से भरपूर लाभ लेना चाहती हैं ताकि अपने परंपरागत वोटबैंक को ओर अधिक मजबूत किया जा सके। लेकिन इस संघर्ष का कोई स्थायी समाधान नहीं होगा बल्कि समाज को केवल नुकसान ही होगा।