श्रीजगन्नाथ मंदिर की 60,426 एकड़ जमीन पर अवैध कब्जा किया हुआ है, सरकार किया कब्जा मुक्त का ऐलान, जाने विस्तार से।
श्रीजगन्नाथ मंदिर की सैकड़ों एकड़ जमीन पर अतिक्रमण:-
भूमिका पर एक नजर:
पुरी का श्री जगन्नाथ मंदिर न केवल ओडिशा, बल्कि देश के धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की यह पवित्र नगरी चार धामों में से एक है। इस मंदिर की मान्यता इतनी अधिक है कि देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालु यहां हर वर्ष दर्शन के लिए आते रहते हैं। किंतु पिछले कुछ समय से एक गंभीर समस्या के कारण इस मंदिर की प्रतिष्ठा और संपत्ति को चुनौती दी है और वह है अतिक्रमण।
श्री जगन्नाथ temple की संपत्ति:-
प्राचीन काल से ही श्री जगन्नाथ temple के पास हजारों एकड़ भूमि थी, जो मंदिर की सेवा, रथयात्रा, अन्नदान, धार्मिक अनुष्ठानों व सेवादारों की जीविका के लिए दान में दी हुई संपत्ति थी। ये सभी भूमियाँ ओडिशा राज्य के साथ साथ अन्य राज्यों में भी फैली हुई हैं। मंदिर प्रशासन के अनुसार, मंदिर के पास लगभग 60,000 एकड़ से अधिक की भूमि है, जिनमें से जमीन का एक बड़ा हिस्सा पिछले कई वर्षों में अवैध कब्जों और अतिक्रमण का शिकार हुआ है। जो वास्तव में चिंता का विषय है।
अतिक्रमण के स्वरूप पर एक नजर:
- स्थानीय भूमि माफियाओं का अवैध कब्जा: Temple की कई एकड़ भूमि स्थानीय दबंग प्रवृति के लोगों, भूमाफिया और राजनीतिक संरक्षण प्राप्त व्यक्तियों द्वारा कब्जा कर ली गई है। उन्होंने इस जमीन पर अनधिकृत होते निर्माण कार्य, खेती और व्यावसायिक गतिविधियाँ उनके द्वारा शुरू कर दी गयी हैं।
- आवासीय निर्माण कार्य: Temple के आस-पास कई जगहों पर लोगों ने अपने घर बना लिए हैं। कुछ मामलों ऐसे भी हैं जिसमे इन घरों को खरीद-फरोख्त कर गैरकानूनी तरीके से प्रॉपर्टी के रूप में भी बेच दिया गया।
- कृषि भूमि पर कब्जा करना: मंदिर परिसर के लिए दान की गई कृषि योग्य भूमि को भी कई लोगों ने अवैध रूप से जोतना शुरू कर दिया है। इनसे मंदिर को कोई लाभ नहीं है; इनसे न तो कोई किराया मिल रहा है, न ही उपज मिल पा रही है।
- सरकारी उदासीनता का कारण: वर्षों तक प्रशासन और राज्य सरकार की लापरवाही के कारण ही ये अतिक्रमण इतने बड़े स्तर पर बढ़ते चले गए। भूमि रिकॉर्ड को बीच बीच में अपडेट भी नहीं किया गया और न ही इसका नियमित निरीक्षण हुआ।
इसके परिणाम और इसके प्रभाव:-
- मंदिर की आय में हुई भारी कमी: मंदिर को जो आय खेती, किराया या व्यापारिक उपभोग से होनी चाहिए थी, वह अतिक्रमण के कारण रुक गई। इससे Temple की दैनिक चलने वाली व्यवस्थाओं और त्योहारों की भव्यता पर काफी असर पड़ा।
- सेवायतों की आजीविका पर होने वाला असर: जिन परिवारों को मंदिर की जमीन पर अधिकार या पट्टे मिले हुए थे, उनकी जमीनें भी कब्जा कर ली गईं और इससे उनकी आर्थिक स्थिति कमजोर होने लगी।
- धार्मिक भावना को ठेस: जब एक पवित्र स्थान की भूमि पर कब्जा कर व्यापार या निजी उपयोग होता है, तो श्रद्धालुओं की भावना को गहरा आघात पहुंचता है।
- बढ़ती कानूनी उलझनें: मंदिर प्रशासन ने जब भी भूमि खाली कराने का प्रयास किया, कब्जे वालों ने उल्टा उन्हे ही कानूनी पेंच में फंसा दिया। कई मामलों में अदालत में मामले वर्षों से लंबित पड़े हुए हैं।
सरकार द्वारा उठाए गए हालिया कदम:-
ओडिशा सरकार और श्रीजगन्नाथ प्रशासन ने पिछले कुछ वर्षों में इस दिशा में कुछ कदम उठाए हैं:
- भूमि सर्वेक्षण और डिजिटलीकरण को बढ़ावा: सरकार ने मंदिर की सभी ज़मीनों का डिजिटल रिकॉर्ड तैयार करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है, जिससे वास्तविक मालिकाना हक को स्पष्ट किया जा सके।
- अतिक्रमण हटाओ अभियान में तेजी: राज्य सरकार ने कई जिलों में प्रशासनिक कार्रवाई कर मंदिर की भूमि को अतिक्रमण से मुक्त करा दिया है। सरकार ने सैकड़ों एकड़ भूमि पर से कब्जा हटाया गया है।
- कानूनी कार्रवाई पर एक नजर: राज्य सरकार द्वारा कई मामलों में भूमाफियाओं और अतिक्रमणकारियों पर कानूनी कार्यवाही की जा रही है।
भविष्य की राह:
- सरकार द्वारा कड़ी निगरानी और नियमित जांच: मंदिर की भूमि की सरकार द्वारा समय-समय पर जांच, निरीक्षण और निगरानी होनी ही चाहिए ताकि नए अतिक्रमण को रोका जा सके।
- डिजिटल भूमि रजिस्टर को बढ़ावा: सरकार द्वारा सभी भूमि का डिजिटलीकरण और जनसुलभ ऑनलाइन रिकॉर्ड्स बनाए जाने चाहिए, जिससे temple की पारदर्शिता बनी रहे।
- सरकार द्वारा कठोर दंड व्यवस्था: अतिक्रमणकारियों के खिलाफ सरकार को सख्त दंड का प्रावधान करना चाहिए ताकि वे पुनः कब्जा करने की हिम्मत न कर सकें।
निष्कर्ष:-
श्री जगन्नाथ temple की भूमि पर होने वाला अतिक्रमण न केवल आर्थिक दृष्टि से, बल्कि धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी एक गंभीर समस्या बनी हुई है। उड़ीसा का यह जगन्नाथ टैम्पल केवल एक भवन नहीं है, बल्कि भारतीय संस्कृति, आस्था और परंपरा का जीवंत प्रतीक भी है। अतः उसकी संपत्ति की रक्षा करना केवल राज्य सरकार या प्रशासन का ही ज़िम्मेदारी नहीं है, बल्कि हर श्रद्धालु और नागरिक का नैतिक कर्तव्य भी बनता है कि अपनी संस्कृति की रक्षा करे।
