उत्तराखंड न्यूज़: सीएम पुष्कर सिंह धामी ने उत्तराखंड में अल्पसंख्यक विधेयक 2025 पास किया, मदरसा बोर्ड हुआ खत्म। जाने विस्तार से। Always Right or Wrong.
उत्तराखंड अल्पसंख्यक शिक्षा विधेयक-2025:-
उत्तराखंड में अब तक अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों को केवल मुस्लिम समुदाय ही इसमें मान्यता प्राप्त करते थे। इस असंतुलन को दूर करने और एक समावेशी, पारदर्शी और गुणात्मक शिक्षा व्यवस्था स्थापित करने के उद्देश्य से राज्य सरकार ने “उत्तराखंड अल्पसंख्यक शिक्षा विधेयक-2025” बहुमत से पारित किया है।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा, यह विधेयक केवल एक कानूनी दस्तावेज मात्र नहीं है, बल्कि शिक्षा में गुणवत्ता, छात्रों के हक और सामाजिक सामंजस्य को मजबूत करने की दिशा में भी एक ऐतिहासिक कदम माना जा रहा है।
इसका मुख्य प्रावधान निमन्वत है:-
(a) अल्पसंख्यक समुदायों का विस्तार होगा:
अब तक अल्पसंख्यक दर्जा केवल मुस्लिम समुदाय को ही मिलता था। इस विधेयक से सिख, जैन, ईसाई, बौद्ध और पारसी समुदायों को भी अल्पसंख्यक होने का लाभ मिलेगा।
(b) मदरसा बोर्ड का समापन व नया ढांचा:
‘उत्तराखंड मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम-2016’ और ‘गैर-सरकारी अरबी एवं फारसी मदरसा मान्यता नियमावली-2019’ को 1 जुलाई 2026 से पूर्णतः समाप्त कर दिया जाएगा।
(c) उत्तराखंड राज्य अल्पसंख्यक शिक्षा प्राधिकरण का गठन किया गया:
इस विधेयक के तहत “उत्तराखंड राज्य अल्पसंख्यक शिक्षा प्राधिकरण” का गठन किया जाएगा। इसमें एक अध्यक्ष और 11 सदस्य शामिल किए जाएँगे, जिनमें अल्पसंख्यक समुदायों (मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन, पारसी) के प्रतिनिधि नियुक्त किए जाएँगे। अध्यक्ष शिक्षाविद होंगे और अन्य में विभिन्न विभागों के अनुभवी अधिकारी शामिल किए जाएँगे।
(d) मान्यता की अनिवार्यता और नियम लागू होना:
सभी अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों को प्राधिकरण से मान्यता प्राप्त करनी अनिवार्य की जाएगी। मान्यता तीन सत्रों के लिए ही वैध होगी, जिसके बाद नवीनीकरण किया जाएगा। मान्यता मिलने के लिए संस्थानों को सोसाइटी एक्ट या ट्रस्ट एक्ट या कंपनी एक्ट के अंतर्गत पंजीकरण, अपनी जमीन, बैंक खाता, संपत्ति संस्थान के नाम पर ही होना, वित्तीय लेन-देन में पारदर्शिता लाना, सामाजिक और धार्मिक गतिविधियों में बाध्यता न होना जैसी शर्तें हर हाल में पूरी करनी होंगी।
प्रतिक्रियाएँ और आलोचना पर संक्षिप्त वर्णन:-
(a) विपक्षी प्रतिक्रिया क्या रही:
कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने विधेयक को कूप-मंडूक यानि narrow-minded सोच का उदाहरण देकर बताया। उन्होंने ‘मदरसा’ जैसे उर्दू शब्दों को हटाने पर सवाल भी उठाया और विधेयक पर सांस्कृतिक पूर्वाग्रह का खुलकर आरोप लगाया।
कांग्रेस प्रवक्ताओं ने इससे शिक्षा नीति की प्राथमिकताओं पर भी सवाल उठाए, कहा कि राज्य में आधारभूत शिक्षा, स्कूल व शिक्षक की व्यवस्था में कोई हल नहीं हैं, जबकि सरकार यह विधेयक लेकर जनता का समय बर्बाद कर रही है।
(b) मदरसा बोर्ड अध्यक्ष ने किया स्वागत:
मदरसा बोर्ड के अध्यक्ष मुफ्ती शमून कासमी ने इस कदम का स्वागत भी किया, यह कहते हुए कि इससे लाभ ज्यादा अल्पसंख्यक समुदायों को ही होगा और धार्मिक शिक्षा प्रभावित नहीं हो सकती।
(c) व्यक्तित्व की सराहना भी:
बीजेपी नेता महेंद्र भट्ट ने इस विधेयक की सराहना करते हुए कहा, इसे देवभूमि (उत्तराखंड) की सुरक्षा और शिक्षा को बेहतर दिशा देने वाला कदम भी बताया।
(d) समाजवादी दृष्टिकोण की ओर इशारा:
समाजसेवी मनु गौर ने विधेयक को ऐतिहासिक कदम बताया और कहा कि यह अल्पसंख्यक युवा वर्ग को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और सामाजिक समावेश का बेहतर अवसर मिलना चाहिए।
5. इसका निष्कर्ष:-
“उत्तराखंड अल्पसंख्यक शिक्षा विधेयक-2025” राज्य की शिक्षा नीति में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन देखने को मिलेगा। इस परिवर्तन के प्रभावी पहलुओं में शामिल कुछ बिन्दु निमन्वत हैं:
- अल्पसंख्यक मान्यता का विस्तार होगा — अब सिर्फ मुस्लिम ही नहीं, अन्य सभी अल्पसंख्यक समुदाय भी इससे लाभान्वित हो सकेंगे।
- नए प्राधिकरण का गठन किया जाएगा — एक समावेशी और जवाबदेह संरचना जो पारदर्शिता और गुणवत्ता सुनिश्चित कर सकेगी।
- प्रशासनिक सुधार भी होगा — मान्यता प्रक्रिया में जवाबदेही, वित्तीय पारदर्शिता और मानकों का अनुपालन सुनिश्चित किया जा सकेगा।
- संविधानिक अधिकारों की रक्षा भी — शिक्षा क्षेत्र में अल्पसंख्यकों के अधिकारों को संवैधानिक सुरक्षा प्राप्त हो सकेगी।
- समाज में सौहार्द आएगा — समान अवसर और शिक्षा के माध्यम से सामाजिक संयोजन और सौहार्द भी बढ़ेगा।
हालांकि विपक्ष ने इस कदम को आलोचनात्मक दृष्टिकोण से ही देखा, कई समाजिक व्यक्तियों और स्थानीय नेताओं ने इस परिवर्तन को सकारात्मक और दूरदर्शी भी माना है।
कुल मिलाकर, यह विधेयक उत्तराखंड में अल्पसंख्यक शिक्षा व्यवस्था में व्यापक सुधार और सामाजिक समावेश सुनिश्चित कर सकेगा।
