युवा भारतीयों के फेफड़े हो रहे तेजी से खराब, सांस लेने में हो रही दिक्कत। 10 विशेषज्ञों की चेतावनी। Always Right or Wrong.
भारत में युवाओं के फेफड़े हो रहे तेजी से खराब, सांस लेने में हो रही दिक्कत:-
भारत एक विशाल और युवा देश है, जहाँ 65% से अधिक जनसंख्या 35 वर्ष से भी कम आयु की है। परंतु चिंताजनक तथ्य यह है कि आज के युवा शारीरिक रूप से पहले की तुलना में अधिक अस्वस्थ होते जा रहे हैं, विशेषकर श्वसन संबंधी बीमारियों के मामले में सबसे ज्यादा। रिपोर्टें बताती हैं कि भारत में युवाओं के फेफड़े तेजी से खराब होते जा रहे हैं और उनमें सांस लेने में दिक्कत तेजी से बढ़ रही है। यह स्थिति न केवल व्यक्तिगत स्वास्थ्य के लिए बहुत खतरनाक है बल्कि समाज और अर्थव्यवस्था पर भी इसका गहरा असर पड़ता है।
युवाओं में फेफड़े खराब होने की बढ़ती समस्या पर एक नजर:-
बीते एक दशक में शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में युवाओं के बीच श्वसन संबंधी बीमारियों में तेजी से वृद्धि हुई है। यह समस्या केवल प्रदूषण तक ही सीमित नहीं है बल्कि जीवनशैली, खान-पान और आदतों का भी बड़ा योगदान साबित हुई है।
- दिल्ली, मुंबई, पटना, लखनऊ जैसे बड़े शहरों में रहने वाले युवाओं के फेफड़ों की कार्यक्षमता सामान्य से 20–30% तक कम पाई गई है।
- 20–35 वर्ष की आयु वर्ग के युवाओं में अस्थमा, ब्रोंकाइटिस और COPD जैसी बीमारियों के मामले लगातार बढ़ रहे हैं।
- छोटे कस्बों और गाँवों में भी यह समस्या तेजी से बढ़ रही है क्योंकि वहाँ भी धूल, धुआँ, और धूम्रपान का प्रभाव भी बढ़ा है।
इसके प्रमुख कारण:-
(क) वायु प्रदूषण का होना:
- शहरी प्रदूषण की बात करें तो महानगरों में वाहनों का धुआँ, औद्योगिक उत्सर्जन और निर्माण स्थलों की धूल युवाओं के फेफड़ों पर भी सीधा असर डालती है।
- ग्रामीण प्रदूषण को देखें तो गाँवों में लकड़ी और कोयले से खाना पकाने का धुआँ, पराली जलाना और धूलभरी सड़कें भी समस्या का बहुत बड़ा कारण हैं।
- WHO की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के 20 से अधिक शहर दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में शामिल हो चुके हैं।
(ख) धूम्रपान और वेपिंग की समस्या:
- युवाओं में सिगरेट, बीड़ी और हुक्का पीने की आदत देखा जाये तो आम हो चुकी है।
- हाल के वर्षों में ई-सिगरेट और वेपिंग को “स्टाइल” माना जाने लगा है, जिससे किशोरों और युवाओं में निकोटीन की लत भी तेजी से फैल रही है।
- लगातार धूम्रपान से फेफड़ों की कोशिकाएँ भी नष्ट होती हैं और श्वसन तंत्र भी कमजोर हो जाता है।
इसका लक्षण:-
युवाओं में फेफड़े खराब होने के शुरुआती लक्षण अक्सर नज़रअंदाज किए जाते हैं।
लगातार खाँसी रहना, सीढ़ियाँ चढ़ते समय जल्दी ही थक जाना, हल्की दौड़ में ही सांस का फूलना, छाती में जकड़न होना, बार-बार सर्दी-जुकाम का होना, थकान और कमजोरी महसूस होना।
स्वास्थ्य पर होने वाले गंभीर प्रभाव:-
फेफड़ों की खराबी केवल सांस लेने की समस्या तक ही सीमित नहीं रहती। इसके कई दीर्घकालिक प्रभाव भी होते हैं:
- अस्थमा और ब्रोंकाइटिस जैसी पुरानी बीमारियाँ होना, हृदय रोगों का खतरा तेजी से बढ़ना, कम उम्र में ही ऑक्सीजन की कमी से कार्यक्षमता में भी गिरावट, बार-बार अस्पताल में भर्ती होने की समस्या, गंभीर मामलों में फेफड़ों का कैंसर तक होने का खतरा बना रहता है।
इसका समाधान और उपाय निमन्वत हैं:-
- धूम्रपान छोड़ना, यह फेफड़ों को बचाने का सबसे बड़ा कदम माना जाता है।
- योग और प्राणायाम करना – अनुलोम-विलोम, कपालभाति और भस्त्रिका जैसी क्रियाएँ फेफड़ों को बहुत हद तक मजबूत बनाती हैं।
- नियमित व्यायाम करना – दौड़ना, साइकिल चलाना और तैराकी फेफड़ों की क्षमता को बढ़ाते हैं।
- संतुलित आहार लेना – हरी सब्जियाँ, मौसमी फल और विटामिन-सी से भरपूर आहार प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं।
- मास्क का उपयोग करना – प्रदूषण वाले इलाकों में N95 मास्क का प्रयोग बहुत जरूरी है।
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इसका निष्कर्ष:-
भारत में युवाओं के फेफड़े खराब होना और सांस लेने में दिक्कत बढ़ना केवल स्वास्थ्य की समस्या मात्र नहीं है, बल्कि यह आने वाले समय में एक गंभीर सामाजिक और आर्थिक चुनौती भी साबित हो सकती है। यदि आज से ही व्यक्तिगत, सामाजिक और सरकारी स्तर पर ठोस कदम नहीं उठाए जाते हैं, तो आने वाले वर्षों में स्थिति और भी अधिक भयावह हो जाएगी।
युवा पीढ़ी किसी भी देश की रीढ़ मानी जाती है। यदि वही अस्वस्थ होती है तो देश का भविष्य भी खतरे में होगा। इसलिए जरूरी है कि हम सब मिलकर प्रदूषण को कम करने का प्रयास करें, स्वस्थ जीवनशैली अपनाएँ और समय-समय पर स्वास्थ्य जांच भी अवश्य करवाएँ। केवल इसी तरह हम भारत के युवाओं के फेफड़ों को बचाने में सफल हो सकते हैं और उन्हें स्वस्थ भविष्य प्रदान कर सकते हैं।
