लंदन में सड़कों पर उतरे 1.5 लाख से अधिक लोग? क्या है मामला? जाने विस्तार से। Always Right or Wrong.
हाल ही में देखने को मिला कि लंदन की सड़कों पर एक लाख से ज़्यादा लोगों के इकट्ठा होने वाली घटना “Unite the Kingdom” रैली है, जिसे फ़ार-राइट (बहुत राष्ट्रवादी / कट्टर दक्षिणपंथी) नेता टॉमी रॉबिन्सन नामक व्यक्ति ने आयोजित किया था। लंदन की सड़कों पर हो रही इस रैली का मुख्य उद्देश्य ब्रिटेन में रह रहे अवैध प्रवाशियों को देश से बाहर निकालना है।
लंदन की इस रैली के मुख्य तथ्य क्या रहे:-
- लंदन में यह रैली 13 सितंबर, 2025 को यह घटना लंदन के सेंट्रल इलाकों में हुआ।
- आयोजकों व पुलिस के अनुमान में करीब 1,20,000 से 1,65,000 लोग लंदन की इस रैली में शामिल हुए थे। रैली को “Unite the Kingdom” नाम दिया गया।
- इसके साथ एक प्रतिरोध यानि counter-protest भी सड़कों पर खूब देखने को मिला, “Stand Up to Racism” नामक समूह द्वारा लगभग 6,000 से अधिक लोग इसमें शामिल हुए थे।
- लोगों की आप्रवासन यानि immigration के खिलाफ नाराज़गी, विशेषकर अवैध या अनियंत्रित प्रवासियों को लेकर भी यह रैली लंदन में बुलाई गयी थी।
- स्वतंत्रता से बोलने को यानि free speech, राष्ट्रीय पहचान अर्थात British heritage, “हमारी संस्कृति बचाओ” जैसे नारों के साथ भी रहा।
- सरकार और प्रधानमंत्री की नीतियों के खिलाफ भी असंतोष बड़ी मात्रा में देखने को मिला, विशेषकर मौजूदा Labour पार्टी सरकार और प्रधानमंत्री कियर स्टार्मर (Keir Starmer) के प्रति भी ये गुस्सा देखने को मिला।
क्या यह वास्तव में सत्ता परिवर्तन का इशारा हो सकता है?
यहाँ “सत्ता परिवर्तन” से मतलब इस बात से है कि क्या इस तरह की रैली भविष्य में सरकार बदलने या बड़े राजनीतिक बदलाव की शुरुआत भी कर सकती है। इस पर आधारित विश्लेषण कुछ इस तरह से है:
हाँ की संभावना की बात हो तो:
- इतने बड़े स्तर की रैली इस बात का संकेत भी देती है कि इस विषय पर असंतोष में बहुत लोग शामिल हुए हैं। यदि यह भावनाएँ संगठित भी हो जाएँ तो चुनावों में, राजनीतिक दलों या गठबंधनों के माध्यम से, यह मौजूदा सरकार के लिए चुनौतियाँ भी बढ़ा सकती है।
- जब इस तरह के रैलियों से मीडिया, सार्वजनिक बहस, विरोधी दलों द्वारा आन्दोलन की रूपरेखा सही प्रकार से तैयार होना होता है, तो सरकार को अपनी नीतियों की समीक्षा भी करनी भी पड़ सकती है; आप्रवासन नीति, सीमा सुरक्षा, शरणार्थी-प्रक्रिया आदि के क्षेत्र में। राजनीतिक दल इस मुद्दे को चुनावी मुद्दे भी बनाने के लिए आतुर हैं।
- यदि लोग इस बात को महसूस करें कि मुख्यधारा की पार्टियाँ उनकी चिंता ठीक से नहीं सुन पा रहीं हैं, तो देश में राष्ट्रवादी या फरो-राइट पार्टियाँ भी तेजी से बढ़ सकती हैं, या नए राजनीतिक प्लेटफ़ॉर्म भी सामने आ सकते हैं। UK में Reform UK जैसी पार्टियाँ पहले से काफी ज्यादा लोकप्रियता पा रही हैं।
इस आंदोलन के माध्यम से नहीं की संभावना कितनी:-
- रैलियाँ आत्म-प्रेरित असंतोष को भी खुलकर दिखाती हैं, लेकिन राजनीतिक शक्ति में बदलने के लिए एक अच्छी व्यवस्था, नेतृत्व, संसाधन और योजना भी तैयार चाहिए होती है। सिर्फ प्रदर्शन होना पर्याप्त नहीं है; चुनावी रणनीति, नीति-प्रस्ताव और वैकल्पिक नेतृत्व का भी होना बहुत जरूरी है।
- रैलियों में शामिल लोग ज़्यादातर ऐसे होते हैं जो अपने गुस्से या असंतोष को बाहर निकालने का पूर्ण प्रयास को दिखाते हैं, लेकिन चुनाव के समय वोट उनका विश्लेषण इतना सरल भी नहीं होता। कोई व्यक्ति रैली में शामिल हो सकता है, लेकिन वोट किस दल को देता है, यह एक और मुद्दा हो सकता है। मुख्यधारा की पार्टियाँ अक्सर व्यापक दलगत गठबंधन, संसदीय तंत्र और राजनीतिक संस्थाओं के माध्यम से निर्णय पर भी काफी असर डाल सकती हैं।
- सरकार, प्रशासन व पुलिस व्यवस्था ऐसी रैलियों को नियंत्रित करने, कानून व्यवस्था बनाए रखने, राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों की आलोचनाएँ सामना करने आदि की क्षमताएँ भी रखती है। यदि रैली से कोई हिंसा होती है या सार्वजनिक सुरक्षा को खतरा भी लगता है, तो सरकार जनता में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए अपनी कार्रवाई को अवश्य कर सकती है; कानूनी, मीडिया या नीतिगत तरीकों से भी यह हो सकता है।
इसका निष्कर्ष:-
इस घटना ने साफ़ संकेत दे दिया है कि ब्रिटेन में आप्रवासन यानि immigration के सवाल पर गहरा बढ़ता असंतोष खुलकर दिखता है और राष्ट्रवादी, फरो-राइट विचारधाराएँ पहले से ज़्यादा सार्वजनिक बहस में हैं। “Unite the Kingdom” रैली इस असंतोष की एक बुलंद आवाज़ है।
लेकिन इसका मतलब यह बिलकुल नहीं हो सकता कि सत्ता परिवर्तन ज़रूरी है या तुरंत होगा। बदलाव की दिशा कई कारकों पर भी निर्भर करेगी:
- क्या यह आंदोलन भविष्य में चुनावी राजनीति में बदल पायेगा?
- क्या कोई राजनीतिक दल इस असंतोष को अपने एजेंडे में लेगा और वोटों में फायदा सही प्रकार उठायेगा?
- सरकारी नीति और कानून कितना लचीला हो सकता है और विरोधी विचारधाराओं को नियंत्रित करने की शक्ति भी कितनी है?
- मीडिया, न्यायपालिका और जनता का रवैया इसमें क्या होगा?
