एनसीईआरटी में मुगल हटेगा और महाकुंभ जुड़ेगा
NCERT:-
NCERT की पाठ्यपुस्तकों से मुगल सल्तनत को हटाकर और महाकुंभ को जोड़ना:-
NCERT की भूमिका:-
शिक्षा किसी भी राष्ट्र का मुख्य बिन्दु होती है। पाठ्यपुस्तकें उस मुख्य बिन्दु की मूलभूत संरचना होती है। भारत जैसे विविधता वाले देश में, इतिहास का शिक्षण केवल अतीत की घटनाओं को जानने का साधन नहीं होता, बल्कि सामाजिक चेतना और नागरिक के मूल्यों को विकसित करने का माध्यम भी होता है। हाल ही में एनसीईआरटी (राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद) द्वारा किए गए कुछ प्रमुख बदलाव किए गए; जैसे मुगल सल्तनत से संबंधित विषयों को पाठ्यपुस्तकों से हटाया जाना और महाकुंभ जैसे धार्मिक आयोजनों को शामिल करना है, जिसने व्यापक सार्वजनिक, शैक्षिक और राजनीतिक बहस को भी जन्म दे दिया है।

मुगल सल्तनत को NCERT से हटाना: इसके ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य:-
मुगल साम्राज्य भारतीय उपमहाद्वीप क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण इतिहास माना जाता रहा है। बाबर द्वारा सन 1526 ईसवी में स्थापित यह सल्तनत लगभग 300 वर्षों तक भारत की राजनीति, संस्कृति, कला, साहित्य, वास्तुकला और प्रशासनिक ढांचे को बहुत हद तक प्रभावित करती रही। अकबर की धार्मिक सहिष्णुता की नीतियां, शाहजहां की स्थापत्य कृतियां जैसे ताजमहल और औरंगज़ेब द्वारा अपनायी गयी कठोर धार्मिक नीतियां भारतीय इतिहास की क्रूरता को दर्शाती है।
भारत में एनसीईआरटी की पाठ्यपुस्तकों में इन सभी पहलुओं को संतुलित ढंग से प्रस्तुत किया गया ताकि छात्र इतिहास की विविधता और इसकी जटिलताओं को अच्छे से समझ सकें। लेकिन हाल ही में इतिहास और राजनीति विज्ञान की कक्षा 12 की पुस्तकों से मुगलों से संबंधित कई ऐसे अध्यायों को हटाया गया है जिसमें मुगल दरबार और उनकी नीतियां व धार्मिक बहुलता के युग को बढ़ा चढ़ा कर दिखाया गया है।
NCERT: प्रयागराज में महाकुंभ का समावेश: सांस्कृतिक पुनरुत्थान या धार्मिक झुकाव की ओर?
नई पाठ्यपुस्तकों में प्रयागराज में हुए महाकुंभ जैसे धार्मिक आयोजनों को प्रमुखता से शामिल किया गया। महाकुंभ; जिसे हिंदू धर्म के सबसे बड़े तीर्थ आयोजनों में से एक माना जाता है, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन तथा नासिक में आयोजित होने वाला यह आयोजन लाखों श्रद्धालुओं को आने के लिए आकर्षित करता है और भारतीय धार्मिक परंपराओं का प्रतीक भी माना जाता है।
प्रयागराज में हुए महाकुंभ को पाठ्यक्रम में शामिल करना भारत की सांस्कृतिक विरासत के सम्मान के रूप में देखा जाना चाहिए। इस आयोजन ने न केवल धार्मिक विश्वास का प्रतिनिधित्व किया, बल्कि सामाजिक समावेशिता, सामूहिकता और परंपरा की निरंतरता का सिद्ध किया है। दूसरी ओर आलोचकों का अपना एक तर्क है और वह है कि केवल एक धार्मिक परंपरा को प्रमुखता देना भारत के धर्मनिरपेक्ष चरित्र और शैक्षिक संतुलन के लिए उचित नहीं होगा।
शैक्षणिक दृष्टिकोण का समाज पर कितना प्रभाव:-
एनसीईआरटी पाठ्यपुस्तकें भारत के सभी राज्यों के विद्यालयों में अध्ययन का आधार हैं। एनसीईआरटी द्वारा जब किसी विशेष साम्राज्य को हटाया जाता है या किसी धार्मिक आयोजन को जोड़ा जाता है, तो इसका सीधा प्रभाव छोटे छोटे छात्रों की ऐतिहासिक समझ और सोचने की क्षमता पर बहुत तेजी से पड़ता है। एक समावेशी पाठ्यक्रम न केवल विभिन्न सभ्यताओं और संस्कृतियों को जानने का अवसर प्रदान करता है, बल्कि छात्रों को बहु-विचारधाराओं का सम्मान करने का संस्कार भी देता है।
मुगल इतिहास को हटाने का वास्तविक मतलब, केवल एक शासनकाल को मिटाना नहीं, बल्कि उस दौर में विकसित हुई प्रशासनिक व्यवस्था, स्थापत्य कला, भाषाई मिश्रण जैसे उर्दू, फारसीआदि भाषाओं और सांस्कृतिक सहिष्णुता को भी पाठ्यक्रम से बाहर कर देना होता है। यह छात्रों को एक अधूरा, पक्षपाती और संकुचित दृष्टिकोण प्रदान करेगा।
इसका सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव क्या होगा:-
इतिहास का लेखन और शिक्षण केवल शैक्षणिक गतिविधियाँ ही प्रभावित नहीं करता, बल्कि ये सामाजिक चेतना और राजनीतिक दिशा तय करने वाले उपकरणो को भी जन्म देता है। भारत जैसा देश जहां बहुत से धर्मों को मानने वाले समाज में, इतिहास की एकपक्षीय प्रस्तुति समाज के भीतर विभाजन की भावना को भी जन्म दे सकती है। अगर इतिहास के कुछ हिस्से केवल इसीलिए हटा दिये जाएँ क्योंकि वे वर्तमान राजनीतिक या सांस्कृतिक विमर्श में असुविधाजनक लग रहे हैं तो यह ऐतिहासिक ईमानदारी और शैक्षणिक स्वतंत्रता दोनों के लिए भी गंभीर खतरा है।
महाकुंभ का समावेश भारत के बहुल समाज के एक पक्ष को उजागर करता है, परंतु क्या पाठ्यपुस्तकों में अन्य धार्मिक समुदायों के त्यौहार, परंपराएं और योगदान भी समान रूप से दिखाये जा रहे हैं? यदि ऐसा नहीं है, तो यह असंतुलन सामाजिक सौहार्द को काफी हद तक प्रभावित कर सकता है।
देश को संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता:-
भारतीय इतिहास जो विविधताओं से भरा हुआ है, जिसमे आर्यों से लेकर मौर्य, गुप्त, दिल्ली सल्तनत, मुगलों, मराठों तथा अंग्रेजों तक और फिर स्वतंत्रता संग्राम से लेकर आधुनिक लोकतंत्र तक की यात्रा शामिल है। एक संतुलित पाठ्यक्रम का मतलब होता है जिसमे सभी युगों, घटनाओं और पात्रों को उचित स्थान मिलना चाहिए।
यदि एनसीईआरटी में महाकुंभ को शामिल किया गया है तो बुद्ध पूर्णिमा, गुरुपर्व, मुहर्रम, ईद, क्रिसमस व पोंगल जैसे मुख्य त्योहारों तथा उनके सामाजिक-ऐतिहासिक महत्व को भी समान रूप से पाठ्यक्रम में शामिल किए जाने की आवश्यकता है।
निष्कर्ष:-
एनसीईआरटी की पाठ्यपुस्तकों से मुगल सल्तनत को हटाया जाना और महाकुंभ को जोड़ना केवल शैक्षणिक निर्णय नहीं कहा जा सकता, यह उस सोच को भी दर्शाता है जो इतिहास को वर्तमान राजनीतिक और सांस्कृतिक संदर्भों में ढालने का कृत्य कर रही है। शिक्षा का उद्देश्य केवल तथ्यों को याद करना नहीं होता, बल्कि छात्रों को सोचने, समझने, विचार करने, सवाल पूछने और विविध दृष्टिकोणों को समझने योग्य भी बनाना है।